भूषणग्रन्थावली | Bhushan Granthawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.79 MB
कुल पष्ठ :
265
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ भूषयणुश्नन्थावली की भूमिका । गया है । मलिक मुहम्मद जायसी ने भी यत्र नत्र उपर्युक्त झन्थों की भांति इन रखों का समावेश पद्मावत में किया है | तंदनन्तर चौथे पन जाइय चुप कानन की बात स्मरण कर चौथे की कौन कहे श्रीरामचन्द्र जी की भाँति प्रायः पहिले ही पन में हमारी भाषा काव्यकानन को चल दी झौर मंगवत भजन करने लगी । झतः ऐसे रखो को छोड़ तुलसीदास खूरदास कबीर इत्यादि कवीश्वरों की सहायता से इसने शान्त # रख के बड़े ही मनोरजक राग झलापे परन्तु झस- मय की कोई भी बात चिरस्थायी नहीं होती सो हमारे साहित्य का चित्त भी शांत रख में न लगा । शांत का चास्तथविक प्रादु्भाव तो श्उज्ञार के पश्चात् होता है जब चिषयों का उप- भोग कर प्राणी कुछ थक सा जाता है तभी उसके चित्त में राजा ययाति की शांति उन विषयों की तृष्णा हट कर. निवेद का राज्य होता है । सो हमारे साहित्य ने झपना पुराना उत्साद्द तो छोड़ ही दिया था झ्रब बह निर्वेद को भी तिलांजलि दे झपना श्उज्ञार करने में पूर्णतया प्रदत्त हो गया और हमारे कवियों ने पुरयात्मा सरस्वती देवी को नाय- काझों के गुण कथन में लगाया । इस कार्य्य में जैसा कि हम दिन्दी-काव्य-झालोचना 1 में लिख चुके हैं उनको के अवदय ही सूरदास जी मे एवं अन्य कतिपय कांवियों ने और स्सों की भी कविता की है पर प्रधानता शांतरस की ही रही | 1 सरस्वती भाग १ संख्या १२ देखिए ।
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