खण्डहरों का वैभव | Khandaharo Ka Vaibhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
464
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न श् ६
काम आओ गई। इतिहासकी श्रात्मा दास्त्रोकी धारपर
समाधिमे विलीन हो! गई। श्रब केवल इतिहासका
भूत मुनिजीके कागजमे चिपटा बैठा है!
४. यह 'प्पुर है, गोदिया तहसीलमे--महाकविं भवभूतिकी जन्म-
भूमि ! यहाँ खेत-खेतमें जैन-मूतिया मिलती हे।
इतिहांस खेनोमें बो दिया गया है। ध्वसकी फसल
लहलहा रही है !
५. यह शॉगरगढ़ है--सचमच दुर्गमगद़ ! यहाँकी मुर्तियाँ उपकरणोंके
लालित्यके कारण बड़ी सुंदर श्रोर श्रद्धिगीय हे ।
सतीवर्की बात हो सकती थी कि यहाँ इन मूर्तिोंकी
पूजा होती हे। पर लज्जाकी बात है कि श्रषटिसाके
श्रवतार, जैन-तीर्वकरकी मूरतिके भ्रागे पूजाके दिनोंमे
प्राज भी! बकरीका बच्चा जीवित गाड़ा जाता है। यहां
इतिहास पुजता है !
5. वहज्सो है, विन्ध्यप्रदेशकी प्रसिद्ध पुरातत्वभूमि । इसकी मुख्यता
यह है कि इसे 'जैन-मूतिका नगर' कहा जाता हैं। बड़े
कामकी है ये मूर्तियाँ। इन मूर्तियोंकी बडी सुन्दर
सीढ़ियों बनती है। भझ्रौर वह देखिए, तालावपर हर
घोबीका हर पाट. चिकना-चिकना, मज़बूत-मज़बूत
इन्ही मू्तियोका बना है। श्र, सुनिए मुनिजीकी बात ।
कहते हे--'किसानोके शौचालयसे एक दर्जन मूर्तियाँ
मेंते उठवाई।” जसोकी बात में कह रहा हूँ। इसी
जसोमे एक तालाब है। इसी जसोमे एक राजा साहब
थे, उन राजा साहबका एक हाथी था। एक दिन
वह बेचारा हाथी मर गया। दूर कहाँ ले जाते, तालाबके
किनारे गाइ दिया। जहाँ गाडा वहाँ एक गा रह
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