समाज की पुकार | Samaj Ki Pukaar

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Samaj Ki Pukaar by रघुवीर स्वरुप - Raghuveer Swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) प्रो० रामकृष्ण शुक्क ” शिलीसुख ” एस० ए० का नाम प्रमुख है, जिन्होंने सारी पुस्तक पढ़ कर अपनी शुभ सस्मति तथा परामश' दिया। झात्मीयोके प्रति कतज्ञता ज्ञापन करना पाश्चात्य ढोग होगा । पं० कृष्णुजीवन भागंव तो इस धन्यवाद की लूट के तभी अधिकारी हो गए थे, जब उन्होंने ञाजकल के सिरकुचलं साहित्यिक वातावरण मे भी एक असुपरिचित लेखक की कृति को प्रकाश मे लाने का उत्तरदायित्व ले लिया था | अन्त मे, “ समाज की पुकार ” आज के समाज को सादर समर्पित है । यदि अपने ध्येय मे इसे आंशिक सफलता भी सिली, तो लेखक ( और.' प्रकाशक भी ) अपने को कतकृर्य समभेगे । जयपुर दोलिका ददन - रघुबीरस्वरूप भटनागर, २६ साचें, ३७




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