धर्मशर्माभ्युदयम | Dharmasarmabhyudaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ सम: ] घर्मशमाम्युद्यम् । थक
मूकप्ठठोठज्षवपुण्डरी कलखगबन्घुरा मोघनधघोरणी था ।
सा यस्य दिड्यण्डलमण्डनाय विस्तारिणी कीर्तिरिबावसाति ४ १४ ॥
कल्पद्ुमान्कल्पितदानशीवास्रेतु किलोत्तारपतथ्रिनादे: ।
आाहय दूराद्वितरन्ति दृक्षा फलान्यचिन्त्यानि जनाय यत्र ॥ ७ ॥
तत्राखि तद्ल्पुरं पुर यद्वारस्थढीतोरणवेदिमध्यम् ।
जअलंकरोत्यकेतुरंगपड्धि: कदाचिदिन्दीवरमालिकेब ॥ ६ ॥
सुक्तामया एव जनाः समस्तास्तास्ता: खियो या नवपुष्परागा: ।
बज द्विषां मूर्चि नृपोडपि यस्य वितन्वते नाम विनिश्चिताथेसू ॥५७॥
भोगीन्द्रवेर्मेदमिति प्रसिद्धा यद्टयवेष: किरू पाति झेष: ।
तथाहि दीघान्तिकदीर्षिकास्य निर्मुक्तनिर्माकनिभा विभाति ॥ ५८ ॥
समेत्य यस्मिन्मणिबद्धभूमी पौराजञनानां प्रतिबिम्बदम्भातू |
मन्ये न रूपासृतलोठुपाक्ष्यः पातालकन्या: सबिधं त्यजन्ति ॥ ९ ॥
प्रासादश्रज्चेषु निजप्रियात्या देमाण्डकप्रान्तमुपेत्य रात्री ।
कु्बन्ति यत्रापरदेमकुम्भश्रमं चयगज्ञाजलचकऋ्वाकाः ॥ 5६० ॥
शुभ यदञअंडिहमन्दिराणां लगा 'ध्वजाओषु न ता: फ्ताकाः ।
कि तु त्वचो घड़नत: सितांशोरनों चेस्किमन्तब्रंणकालिकास्य ॥ ६१ ॥
कृताप्यघो भोभिपुरी कुतो 5भूदहीनभूषरेत्यतिकोप्कस्प्रम् ।
यज्जेतुमेतामिव खांतिकाम्भइ्छायाछलात्कामति नागलोकस् ॥ 5२ ॥
संक्रान्तबिम्बः: सबदिन्दुकान्ते नपाल्ये आहरिके: परीते ।
हताननश्री: सुद्दशां चकास्ति काराश्नतो यत्र रुदन्िवेन्दु: ॥ ६३ ॥
विभाति रात्रो मणिकुट्टिमोर्वी संजातताराप्रतिमाबतारा ।
दिल्क्षया यत्र विचित्रमूतेरतानिताक्षीव कुतूहलेन ॥ ६४ ||
१. नीरोगार; मौक्तिकप्रचुराब, २. पुष्मरागों मणिमेदः; ( स्ीपदी तु ) शपुति
दारीरे६रागा रागरहिता न. हे. वज़मझनिः; दीरकश्, ४, बहुभूषभयुक्ता;
(पक्षे ) अद्दीनामिनः सर्पराजः. ५. परिखा.
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