जय भारत | Jay Bharat

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Jay Bharat by मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'श्रहुर पुलोमनपुत्री इन्द्रायी बने. जहाँ , नर भी क्यों इन्द्र नहीं बन सकता वहाँ £ कौन कहता है, नहीं धाज सुर -नेता मैं ! पाकशासनासन का... सूल्यदाता, . कोता मैं । सायह तुरों ने मुमे सौंपी स्वयं शक्ता , कैसी फिर घाज यह वासवी की वक्ता £ अ्रस्तुत मैं मान रखने को एक तृण का , घौर मैं शणी हूँ परमाणु के भी श्यण का / घपना थनादर परन्त यदि मैं सहूँ , तो फिर पुरुष हूँ मैं, किस मुहेँ से कहूँ १” भला हठ-बाल पाके मन्मथ का. पालना , पाने से कठिन किसी पद का. सँसालना । न दूत ने संदिता सुनाया, जो कहा था पुरहृत ने । “गझापकी कृपा से देव-कार्य विष्न-हीन है दे जाकर रसातल़ में देत्य -दल्न दौन है) वाहर की जितनी व्यवस्था, सब ठीक है थ घर की धवस्था किन्तु शून्य है, श्रलीक है। फिर थी शची थीं इस बीच ध्ापके यहाँ , घोर मायके-पता मोद पा रही थीं वे वहाँ । , धान्ना मिले, श्ाऊँ उन्हें लेने स्वयं प्रीति से कर श्राप जो क्तावें उसी. राजोचित रीति से 1”




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