बनारसीविलास | Banarasivilas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन १ सिनननन चऋ पुराण; श्रे खिकचरित्र, सम्यक्त्वरास,; यशोधररास, घनपाज़रास, त्रतकथाकोष आदि के नाम उल्लेखनीय हैं' । _ इसी शताब्दी में श्वेताम्वर साधु श्री चिनयप्रभ ने गोतमरासा की रचना संवत्‌ १४१९ में की थी तथा जिनउदयगुरु के शिष्य और ठकक्‍्कर माल्हे के पुत्र विद्वणू ने क्ञानपंचमी चउपई कीं रचना संवत्‌ १४२३ में समाप्त की थी । प्रथम रचना में गौतम स्वामी का चरित्र चित्रण किया गया है जिसका वणन काफी सुन्दर हुआा हे । दूसरी रचना में श्र तपब्चमी की कथा का वर्णन किया गया है । गौतमस्वामी रासा के एक पद्य का रसास्वादन कीजियें जिसमें उनकी सुग्द्रता का बन किया गया है”-- जिय सहवारइ कॉयलि ट्हूकउ, जिम कुसर मह वनि परिमत वहकउँ । जिम चंदन सो. गंघनिधि, जिमि गंगाजल लहरे लहकई । जिय कण्याचले तेजिंहिं भलकिइ, तिंम गोयम सोसा गनिधो ॥ २६ ॥ १६ वीं शताब्दी में जैनों ने हिन्दी भाषा में काफी साहित्य लिखा ! कुछ उच्च श्रेणी के भी कवि हुए । इन कवियों में संवेग- सुन्दर, ककक्‍्कसूरि; वीदल्ल, छीइल, धघमंदास, ठकक्‍्कुरसी के नाम उल्लेखनीय हें: । संवेगसुन्दर ने सारसीखामणुरास की संवत्तू, १५४५८ में रचना की थी । इसी प्रकार श्री कक्कसूरि ने संवत्‌, १५७४ में . घन्नाचउपई की रचना समाप्त की । वीहल्ल कविने १४५४५ में पत्चेसहेली की रचना की तथा छीदल कवि ने १५८४ में बावनी को समाप्त किया । इसी समय धर्मदास ने भी धर्मोपदेशश्रावकाचार




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