साहित्य चयन | Sahity-chayan

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Sahity-chayan  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रुक उसके सोसारिक अर पारलीफिक कल्यापका मुख्य साधन है। सच्दे शीलकी संदायतासे हो. मनुप्पकों घरें, यश, सम्पत्ति, पेश्य्य, शान, घराग्य आदि सब शुपोकी भाति होती है । सारांश यही है कि लडीवन-संग्राम्म सफरूठ-मनोस्थ दोनेंझे लिस शील ऐसा उपाय है जो घत्येक मनुप्परे स्वाधीन ह। यदार्थनें शीलबान, होना अपने हो ऊपर अदलम्पित है। शीलिदान ममुप्यकों अपने बाद झायरप तथा झाम्तरिक मनो- भादोपर भी ध्यान देसा चरहिए। लिस प्रकार प्सम्नता, नज्दा, सदिप्टुदा, उदारता, बाद उच्द साय धायश्पक है उसी प्रसार किसीकी अनुचित हंसी न करना, ऐसी छोटी- छोडी दाते भी. अावश्यक हैं। शील ही मतुप्पका सच्या जीवमन्वरित्र है! इसका अभ्यास छाधायस्थासे हो होना चाहिए। घड़ी आयुर्मे शौलका दइलना कष्ट साध्य अर ब्मी-फर्मी दो उसम्मय मी हो साना है 1 मुसन इशम मना स्सप्प्य श््य डिशेयर न इसी 1 दे | ् चक्कर नये गे बे कच्चे जद ६ हु ही अ्७, अन्ना कि बा बी (२ 2 उउम इस मदभ्दफा इसिय झसूगग सदापस इाता इ ३ झनप्द्कू बन रथ कि न झत: सम थम ' गिर इंटर ० (३. मदुस्यक इरोडर् कननझान दावे बाय डालर है ! न्क चेक सा किन वि नव चक्र यानि: को हू खुंप पर, इपददान पुरराडर दु्पन्र रा उ घायल लण्ड न जन ररप घरदड इुम इ1 व किन ... जे किन (४ ये उप, उध्उ संग, सनरथ, सार, डक दापर, पम्टार ष्के




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