शरत-साहित्य ( भाग १ ) | Sharath Sahitya Vol-i

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Sharath Sahitya Vol-i by धन्यकुमार जैन - Dhanykumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ सुमति रामने कुछ जबाब नहीं दिया | इस तरह बेठा रहा, मानों उसने सुना ही नहीं | नित्तोमे सामने जाकर कह्ा--बहूजी नहा-घोकर खानेकों कह रही हैं । राम आंखें घुन्नाता हुआ गरजकर बोला--जा तू यहाँसे । दूर हो । “मगर, बहुजीने कया कहा, खुन लिया १” “नहीं सुना, जा । में नहीं नशऊँगा, नहीं खाऊँगा,--कुछ नहीं करूँगा, “वे जा यहांसे ।” “अच्छा तो में जाकर बढ़े देती हूँ ।? कहकर दासी जाने लगी | राम उसी वक्त उठकर चटसे पिछवाइके गंदे तालबमें डुबकी छगा आया ओर भींगे सिर, भींगे कपड़े पहिने, उसी तरह फिर आकर बेठ गया । नरायनी खबर लगते ही घबराकर दौड़ी आई। “अरे ओ भूत ! यह क्या किया तूने १ उस तलैयामे तो मारे डरके कोई पेरतक नहीं डुबोता, ओर वू मजेसे डुबकी लगा आया !” उन्होंने अपने आंचलसे अच्छी तरह उसको दह पोंछी, सिर पोछा, अपने हाथसे कपड़े बदले आर फिर घरमे ले जाकर खाना परोसा । राम थालीकै सामने मुँह फुलाये खूँ टेकी तरह बेठा रह । नरायनी उसके मनकी बात समझ गईं, पास आकर सिरपर हाथ फेरती हुई बोली--राजा भइया है न तू, इस बखत अपने आप खा ले; रातको में खिल दूंगी । अभी तो, देख, इतना आटा रखा है पोनेकी । राजा भइया, खा ले ! तब राम चुपचाप खाकर आर ,कपड़ पहिनकर स्कूल चल दिया | दासीने कदा-- तुम्हारी दी वजदसे इसकी सब आदतें निगड़ती जाती है बहूजी ! इतने बढ़े लड़केको गोदम बिठाकर खिलाया जाता है क्‍या ! जरा-सा रूठ गया तो गोदर्म बिठाकर हाथसे खिलाओ, यह तुम्हारी कहाँकी रीत है ! नरायनी कुक मुस्कराकर बोटी- नदीं तो खाता नदीं जो । रातको खिलानेका रोम न दिखाती तो बहीं मुँह फुलाये बैठा रहता,--खाता थोड़े ही,--न स्कूल जाता । दासीने कहा--खाता केसे नहीं ? भूख लगती तो आप ही खाता । इतना बडा हो गया-




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