दिगम्बरी | Digambari
श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्२ दिगम्बरी
नपी।पमुक्रेयह जानने में देर न लगी कि शराब से उसे सख्त नफरत
थी । कहने लगी :
“श्रसल में, सब कुछ मेरी किस्मत का ही कसूर है । मुझे सब एक
जैसे ही मिलते हैं ।”
जो कुछ उसने कहा था उसके अपने भ्रनुभव पर श्राधारित था । पर
जब तक मेरे श्रौर उसके बीच दाराब की बोतल रखी रही, वह॒ ज्यादा
बोलने को तैयार न थी । झाखिर मेंने मद्य झौर मंगला के बीच मगला को
तरजीह दी श्रौर बोतल हटा दी ।
वह अ्पनी-बीती सुनाने लगी । तीन वर्ष पूर्व उसके गाँव से. कुछ दूर
हटकर एक पक्की सडक बन रही थी । एक श्रोवरसीयर ने वही शत
खेमा डाल रखा था। वह पढा-लिखा झ्रादमी था शझ्ौर कभी जोर से न
बोलता था; मजदूरों तक को कभी डॉटता-फटकारता न था । उसके चेहरे
पर हमेशा मुस्कराहूट खेलती रहती थी श्रौर वह भ्रपनें सारे काम इस
मुस्कराहूट से ही करवा लेता था । मगला को उसकी श्रत्यघिक सज्जनता
अर दालीनता ने ही श्राकृष्ठ किया था ग्रौर एक दिन उसकी मुस्कराहूट
से खिचकर वह उसके खेमे में चली गई ।
भ्रोवरसीयर ने मगला को दयराब पीने के लिए बाध्य कर दिया |
जितनी देर में मंगला ने एक घूट पी थी, वह श्राधी से ज़्यादा बोतल
खत्म कर चुका था । श्रौर फिर बकने लगा--रऐसी गन्दी बातें कि जिन्हें
सुनकर बुरी-से-बुरी वेद्या भी चीत्कार उठती । प्यार करने का उसका
अजीब तरीका था, गालिया दे-देकर मगला को नोचने-खसोटने लगा ।
और अत में, झ्पनी जलती सिगरेट मगला के नगे कघे पर दबादी, मानों
वह एदाट्रे हो । मु्ते याद है मगला ने मुक्ते श्रपना कधा खोलकर दिखाया
था । बाद में, जब कभी भी मेंने वह दाग देखा मेरा मन चिहुंट उठा ।
मुफे यह घटना सुनकर सन्नमुच दुख हुमा था, लेकिन न जाने
किस श्रांतरिक विवशता के कारण मैं दुःख प्रकट न कर सका । मेंने
सिफं इतना ही कहा :
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