दिगम्बरी | Digambari

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Digambari by सूर्य कुमार जोशी - Surya Kumar Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्२ दिगम्बरी नपी।पमुक्रेयह जानने में देर न लगी कि शराब से उसे सख्त नफरत थी । कहने लगी : “श्रसल में, सब कुछ मेरी किस्मत का ही कसूर है । मुझे सब एक जैसे ही मिलते हैं ।” जो कुछ उसने कहा था उसके अपने भ्रनुभव पर श्राधारित था । पर जब तक मेरे श्रौर उसके बीच दाराब की बोतल रखी रही, वह॒ ज्यादा बोलने को तैयार न थी । झाखिर मेंने मद्य झौर मंगला के बीच मगला को तरजीह दी श्रौर बोतल हटा दी । वह अ्पनी-बीती सुनाने लगी । तीन वर्ष पूर्व उसके गाँव से. कुछ दूर हटकर एक पक्की सडक बन रही थी । एक श्रोवरसीयर ने वही शत खेमा डाल रखा था। वह पढा-लिखा झ्रादमी था शझ्ौर कभी जोर से न बोलता था; मजदूरों तक को कभी डॉटता-फटकारता न था । उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कराहूट खेलती रहती थी श्रौर वह भ्रपनें सारे काम इस मुस्कराहूट से ही करवा लेता था । मगला को उसकी श्रत्यघिक सज्जनता अर दालीनता ने ही श्राकृष्ठ किया था ग्रौर एक दिन उसकी मुस्कराहूट से खिचकर वह उसके खेमे में चली गई । भ्रोवरसीयर ने मगला को दयराब पीने के लिए बाध्य कर दिया | जितनी देर में मंगला ने एक घूट पी थी, वह श्राधी से ज़्यादा बोतल खत्म कर चुका था । श्रौर फिर बकने लगा--रऐसी गन्दी बातें कि जिन्हें सुनकर बुरी-से-बुरी वेद्या भी चीत्कार उठती । प्यार करने का उसका अजीब तरीका था, गालिया दे-देकर मगला को नोचने-खसोटने लगा । और अत में, झ्पनी जलती सिगरेट मगला के नगे कघे पर दबादी, मानों वह एदाट्रे हो । मु्ते याद है मगला ने मुक्ते श्रपना कधा खोलकर दिखाया था । बाद में, जब कभी भी मेंने वह दाग देखा मेरा मन चिहुंट उठा । मुफे यह घटना सुनकर सन्नमुच दुख हुमा था, लेकिन न जाने किस श्रांतरिक विवशता के कारण मैं दुःख प्रकट न कर सका । मेंने सिफं इतना ही कहा :




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