सुमित्रानंदन पन्त : जीवन और साहित्य भाग २ | Sumitranandan Pant -jewan Aur Sahitya Part 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सुमित्रानंदन पन्त : जीवन और साहित्य भाग २  - Sumitranandan Pant -jewan Aur Sahitya Part 2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शांति जोशी - Shanti Joshi

Add Infomation AboutShanti Joshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१ प्रयाग पुनरागमन, “आधुनिक कर्वि” तथा लोकायतन'” संस्था की योजना 'ग्राम्या” के प्रणयन के साथ ही मानो पंत के कालाकांकर जीवन का उद्देश्य समाप्त हो गया । रूढ़िघिम ग्राम देवता को शत-शत प्रणाम कर वे वहाँ से विदा लेकर, एक प्रकार से, बाह्य दृष्टि से शांतिपूर्ण एव स्थायी जीवन को भी तिलांजलि देते हैं । जिस प्रकार कालाकांकर का आठ-नौ साल का जीवन उनके घोर मानसिक संघर्ष का जीवन रहा है उसी प्रकार उनका आगामी नौ-दस साल का जीवन आर्थिक संघर्ष, प्रवृत्तियो के सतुलन तथा वैचारिक समन्वय का काल रहा है। इस बीच उन्होंने परिस्थितिवश भारत भ्रमण किया, अनेक प्रदेशों में गए, विभिन्न परिवारों के साथ रहे । सभी प्रकार के अनुभव प्राप्त किए, बहुत कुछ देखा और समझा । पंत का प्रकृति प्रेम विगत वर्षों में व्यापक और गहन होकर भानव' प्रकृति तथा लोक-कल्याण की ओर प्रवत्त हुआ । यथाथें की दृष्टि से उनकी सामाजिक चेतना प्रबुद्ध, व्यापक और सक्रिय हो गई थी तथा उसने उस समन्वयात्मक दृष्टिकोण को आत्मसात्‌ कर लिया था जो अध्यात्म और भरूतवाद की संकीणं दीवारों में सूलगत भेद नहीं मानता है। उनकी युग-चेता मनीषा ने इनके संघर्षों को वास्तविक न मान कर मानव-बुद्धि की उपज माना । जड़ से चेतन तक एक ही सत्य का संचरण है, दोनों ही घरिशानोन्मूखी मध्यवर्ती जीवन धारा के दो किनारों की भाँति हैं । अतः दोनों का समन्वय ही जीवन का सापे- क्षत: समग्र एवं विकासशील सत्य हैं। अंतर्जीवन अथवा आत्मा के सत्य के आधार पर ही हम विज्ञान एवं जड़वाद का समुचित मूल्यांकन कर सकते हैं अन्यथा वह अपनी ही एकांगी प्रगति के कारण मानवता के विकास के लिए




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now