देशी राज्यों की जन - जागृति | Deshi Rajyon Ki Jan Jagriti

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Deshi Rajyon Ki Jan Jagriti by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ) कौन किसे याद करता है । श्राज तक किती ने उनका इतिहास लिखने का विचार नहीं किया था श्रौर जब विवार भी किया गया तो उनके बारे में सामग्री जुटाना कठिन रहा , श्रान यदि रियासतों में कह्दीं-कह्दी मागरिक श्राजादी के दर्शन दोते हैं, एकाघ लोकप्रिय मन्त्री दिखाई देते हैं, या सभा: सम्मेज्नन हो नाते हें तो उसके पीछे ये नींव के पत्थर हैं । कौन जानता हे कि भारतवष' में श्राज भी ऐसे कोने हैं जहाँ सदियों से कोई सावंजनिक सभा नहीं हुई, श्रीौर जहाँ सन्‌ १६४७ को श्रगस्त के बाद सभा हुई तो १७ श्रादमी गोली के घाट उतार दिये गये श्रौर १० घायल कर दिये गये । बुन्देलखण्ड के घावनी राज्य के दरचन्दपुर गाँव म २५ सितम्बर को नवाबी श्रत्याचार का जो दृश्य दिखाई दिया वद्द एक युग पहले सारे देश की रियासतों में दिखाई देता था | देशी राउयों में जो लोग काम करते थे उनको बढ़ी कठिनाइयों का सामना करना पढ़ा । उनमें से श्रघिकंशि गरीब श्राद्शवादी युवक थे, जिनको राष्ट्रीय कायें के साथ श्रपना जीवन -निर्वाद भी करना पढ़ता था। राज्यों में रद कर काय करना प्राय! श्रसम्मव था, फल-स्वरूप उनको प्रांतों में इघर उघर भटकना पढ़ता था । कहीं-कह्ीं यह स्थिति श्र भी दे । कांग्रेस की नीति राजाश्रों के साथ कगढ़ा करने की नहीं थी, इसलिए, उनको श्रपना कार्य श्रपने दी बल पर चलाना पढ़ा । यद्यपि श्राजकक्ष समाचारपत्र स्यासती जनता को प्रावाज़ प्रकट करने को उत्सुक रहते हैं, उस समय किसी राजा के विरुद्ध कुछ लिखना कानून के विरुद्ध दी नददीं, नीति के विद्द्ध भी समा जाता था | बड़े-बड़े श्रख़बार जो श्रंग्रे जों के विरुद् श्राग बरसाते थे, राजाश्रों के विरुद्ध एक शब्द लिखना देशद्राइ समसकते थे । र।ख्य। से ऐसे पत्रों को इनकी सेवाश्रों का पुरस्कार भी मिलता था श्रौर श्रब भी मिलता




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