छायावाद के गौरव चिन्ह | Chhayawad Ke Gorav Chinha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( श१ )
हॉ, पूर्व-युग में मात्र दरीरी सौन्दर्य की अत्यधिक कुत्ता के कारण इसने
उससे बचने का प्रयक्न भी किया और इसी कारण आदि में प्रेम-प्रणय
और पबिरह-वेटना की उनकी अभिव्यक्तियों परोक्ष और अस्पष्ट भी रहीं । उसने
साध्याध्मिक बातायनों को भी आलोकित किया. आर यष्टी मद्दों, वह प्रकृति
के नारी रूप में भी आध्यान्तरित गौर प्रतिपालित हुई । बाद में जब प्रतिकिया
का उ्वार उतरने लगा और छायावादियों के पदों में आत्मविद्वाम की इृटता
बढ़ती गई तो वे चित्र अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट, प्रत्यल भौर अनाइत भी दोते
गये । आगे आने वाले प्रगतिवाटियों की “जीवन को सत्य के रूप” में ग्रहण
करने वाली प्रद्नत्ति का मन्र-चीज भी छायावाद के ही गर्म से प्रत्फुरित हुआ
है, जिसे शायद भावी इतिहास अधिक निप्पक्षता से स्वीकार कर सकेगा ।
छायाबादी कवियों ने नारी के प्रति परम्परागत निपेध-भाव का परित्याय कर
उसकी सामाजिक उपयोगिता को महत्त्र दिया । माया की लग चह सह -घर्मिगी
और सददयोगिनी बनी । इन कवियों ने नारी के प्रेरणा-दायक गक्ति-रुप को मुक्त
कण्ठ से स्वीकार किया है। प्रमाद जी ने नारी को श्रद्धा-स्वरूपिणी तथा विदवास-
रजत-नग के पद-तल में बददने वाली पीयूप-घार माना । इस काव्य ने सद्ददयता,
भावुकता गौर द्ार्दिकता का सबसे ऊँचा आचार माना |
सालव-चादी भावना--छायावाद के भीतर मारत।य अद्ेतवाद की स्वीकृ-
तियों के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं, किन्तु युग-परिर्थिति की ययथा्थताओं के संघर्ष
में उसमे ससार आर जीवन को पूर्ण स्वीकृति दी है। उसमे वायव'य आाददों के
स्थान पर मानव के 'प्रकृत मानव-रूप” को प्रतिष्रा प्राप्त हुई है। इसके पीछे पा श्रास्य
भोतिकवादी विचारधारा भी सक्तिय रही जिसने इस जीवन को स्वप् या माया
मानकर स्वाज्य और क्षाणक न कहा, वरन् उसके कठोर सत्य को स्वी कार क्रिया |
छायावाद ने मानव की महत्ता और जीवन फे मूसय को स्वीकार किया है।
इसी से उसमें सामान्यरूप से दृदय में उठने वाली प्रबृत्तियों के विविध रूपी के
सत्यन्त रमणीय चित्र प्राप्त होते हें । यही प्रदनत्ति आगे पघनफर मानव को
देवताओं से भी श्रेष्ठ स्वीकार करने के रूप में पर्णित हुई । “कामायमी” मे देवों
की दिलासिनी सम्वता के ध्यस पर ही मानवी दष्टि की. प्रति हुई है । श्रद्धा?
उतर 'चामं सगे मानव-जीवन की चूइत्तर सम्मावनाओं के निरपक हूँ । 'पस्त
जी ने फदा--'क्या चमी तुम्हें है चिभ्नुवन में यदि बने रह सको तुम मानव !?
मरगवतीनरम वर्मा च्य्यन एवं नरेन्द्र आदि ने मानव-प्रेस के सीत गाये |
खो का गतिमान और प्रेरक चेतना के रुप से श्रहण--छायबाद नें
उुग-युग से छाये ली के जावन-मूसय की प्रतिष्ठा का है । चह 'वोरगाया काल में
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