छायावाद की काव्य साधना | Chhayavaad Ki Kavya Sadhna

Chhayavaad Ki Kavya Sadhna by क्षेम - Kshem

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छायाबाद का विकास-इतिहास कब तक किन टेड्ी-सीधी खाढ़-खाइयों में श्रपने पथ-संघान के लिए भटकता फिरता । द्विवेदी जी की प्रतिभा गद्यात्सक एवं तकंशील थी ।. वे एक सक्रिय त्ादर्शवादी थे । झालोचन-विवेचन उनकी सजनात्मक शक्ति की प्रमुख दिशा थी | श्रार्यतमाज के प्रखर प्रभाव के कारण अतीत-चेतना एवं विशुद्ध- तावादी सुधार-दूत्ति समाज की प्रगति का प्रतिनिधित्व कर रही थी | घीरे-घीरे श्रामों के रंथान पर नगरों का महत्व बढ़ रहा था श्रौर चेतनाशील विचारवान्‌ प्राम-वासी भी झपनी जीविका एवं प्रचार-प्रसार के लिए नगरों कोश्ारहेथे। उच्चव अपने श्रामिजात्य की खुमारी में भऋपकियां ले रहा था और मध्यवर्ग की आत्म-चेतना करवठ लेने लगी थी । हमारे साहित्यकारों में श्रधिकांश विश्व-विद्यालयों की पाश्चात्य-प्रशाली की उन्च- शिक्षोपाधि से विमृषित तो नहीं थे पर उनमें श्रपनो परिस्थितियों की प्रति- क्रिया और विकासशील प्रबोध अवश्य गतिमान था । समाज की श्रा्थिक सांस्कृतिक एवं मैंतिक दशा के प्रति उनमें असन्तोष था । उन्होंने प्रत्यक्ष श्प्रत्यक्ष रूप से श्राचाय॑ द्विवेदी के नेतृत्व में नये सुजन के निमित्त बहु- विघ उपकरणु-उपादान प्रस्तुत किये । अपने युग के साहित्य के मस्तिष्क-पद्ष को द्विवेदी जी ने इतना पुष्ठ बना दिया कि उसका प्रसार-च्षेत्र संस्कृत एवं हिन्दी-कविता की चर्चा मसठी आदि अन्य प्रान्तीय भाषाओं के साहित्यकारों के परिचय प्राचीन कला-चित्रों के विवेचन दृहत्तर भारत के विवरण ऐलिं- हासिक उल्लेखें पूर्वी-पश्चिमी दर्शनों और नवीन वैज्ञानिक उपलब्धियों से लेकर झनेकानक राजनीतिक सामाजिक श्रार्थिक टीका-टिप्पणियें सामयिक साहित्य एवं तत्कालीन प्रकाशनो की समीक्षात्रो तक फैल गया । व्य-क्ेत्र में द्विवेदी जी ने खड़ी बोली को काब्य-माषा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया श्रौर उनके प्रोत्साइन-प्रवधन से उसमें सुधारात्मक एवं त्रीपदेशिक उद्देश्यें से प्रेरित निबन्ध-कबिताशओं की परंपरा चल पड़ी । किसी सामाजिक अथवा पौराणिक वस्तु को लेकर तत्सम-प्रधान भाषा में कवि




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