हिंदी को मराठी संतों की देन | Hindi Ko Marathi Santon Ki Den

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Hindi Ko Marathi Santon Ki Den by शिव पूजन सहाय - Shiv Pujan Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूमिका [ छः इत गोकुल इईत मथुरा नगरी सबे.. भई.. नीहाल । दास केसव गोपी. ग्वालन तन मन घन बेहाल | दूसरी रचना “गारुढ़ी* (सेंपिरा) शीपक है । मराठी सतों ने सेंपेरे के रूपक का बहुत प्रयोग किया है और उसमे श्राध्यात्मिक भाव भरने का यत्न किया है | देवदास की 'गारुड़ी' की कुछ पक्तियोँ नीचे दी जाती हैं-- वल (श्रव्वल) याद कर वस्ताद की पीर पैगबर नबी की | साघुसन्त सहतों की जीन्ने ये मडा न पयदा कीया । अरे मैं देवदास गारोडी खेलने की बाजी करू खड़ी ईस खेलमो श्राडी तीडी उस लंडीका काम नहीं || अरे मैं गारोडी देवदास खेलने कु आया ठुमारे पास श्रवल दील ते पकडो वबीसवास ॥ वज्यात पाशा देखते रहो लाया हु गयब (गैंब) का पेटारा कोई गाव गुंडा होगा पूरा । भाई का नाम चारा । बोलो मेरे सो यारो । हो यारो ममता नागीन नाचती है । अब तुजकु बतला । वो वस्ताद के हाथ का येक मोहरा हमारे हात च्येढ़ा दीन रख | नागिन का ठुटे थारा के श्रावने न पावे | इसा की सोलहवीं-स्रहवीं शताब्दी में निजामशाह्ी में सामान्य जनता हिन्दी को जिस रूप में बोलती थी, देवदास की 'गायड़ी”--रचना उसका एक उदाहरण है । मुकुन्दानन्द मराठी सत-कवियों मे मुकुन्द नामधघारी छुद्द व्यक्ति हो गये हैं । एक एकनाथ चरित्र- कार हैं ।. दूसरे सारिपाट-स्चयिता हैं, तीसरे प्रवस्थकार हैं, चौथे देवमक्तानुवाद, रामकृष्ण विलास झ्रादि के कर्त्ता, पॉचवें सराठी श्रादिकवि विवेकर्सिधु, परमासृत आदि के लेखक




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