महावीर जयन्ती स्मारिका | Mahavir Jayanti Smarika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
301
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तहिसा
किसी जंगल में एक भयानक साँप रहता था । एक बार
एक सन्त उसके पास से गुजरे । साँप उनके पाँवो में लौटकर श्रपने
उद्धार की प्रार्थना करने लगा । सन्त बोला--“किसी को काटा
मत कर, तेरा भला होगा ।”
सॉप ने काटना छोड़ दिया । उसके इस परिवतंन की चर्चा
दूर-दूर तक फेल गयी । नतीजा यह हुम्रा कि दुष्टजन उसे लकड़ी,
पत्थर इत्यादि से मार-मार कर सताने लगे । एक बार वही सत
फिर उधर से निकले । साँप ने श्रपनी दुःख-गाथा बयान की--
“महाराज, भ्रापने भ्रच्छा उपदेश दिया, मेरा तो जीना ही मुहाल
हो गया ।””
सन्त बोले-“भाई ! मैंने तुकसे काटने के लिए मना किया
था; यह कब कहा था कि तू फूफकारना भी मत ।”
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