महावीर जयन्ती स्मारिका 1975 | Mahavir Jayanti Smarika 1975

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Mahavir Jayanti Smarika 1975 by भँवरलाल पोल्याका - BHANWARLAL POLYAKA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैं ध्वज में संशघन के विच्द्ध नहीं हू अपितु मेरा यह कहना है कि जब ध्वज . में संशोधन श्रपरिहायें था तो क्यों न वे सब तथ्य इस अवसर पर सोचे गये ? जिनके लिये जैन वाइ मय के विद्वान कहते रहे । क्या कस्त्रमाई लॉलभाई जिनकी. अध्यक्षता में १२ जून, १९७४ को बम्बई में सम्पन्न महासंमिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया-बता सकेंगे कि वे कौन सी परिस्थितियाँ रही जो ध्वज में रंग थरिवर्तन हुभा । नीले रंग से काले रंग का परिवर्तन श्राखिर बया कहता है। इस षर न कहीं सावंजनिक रूप से बताया गया श्ौर न ही प्रेस को स्पष्टीकरण दिया गया कि थह रंग परिवर्तन क्यों किया गया । न प्रतिनिधित्व जैन समाज दो सम्प्रदायों में विभक्त माना जाता है-- १) दिगम्बर २) श्वेताम्बर लेकिन जब परिनिर्वाण समारोह राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के सहयोग से मनाने की बात हुई तो इसके लिये बनने वाली समिति में श्वेताम्बर समाज ने झाम्नाय भेद के झ्राघार पर प्रतिनिधित्व चाहा-झर्थात घ्वेताम्बर समाज के तीन अन्य उप समाज--१) मुत्िपूजक २) स्थानकवासी श्रौर ३) तेरापंथी झानुपातिक प्रतिनिधित्व की बात हुई पश्ौर श्रस्त में दिगम्बर समाज ने इसे भी स्वीकारा भ्रौर समिति का गठन हो गया । समाज स्तर पर एक महासमिति का गठन हुभ्रा इसके अध्यक्ष श्री कस्तूरभाई लाल भाई (श्वेताम्बर समाज के प्रतिष्ठित एवं वरिष्ठ नेता) तथा कार्याध्यक्ष साहू श्री शान्तिप्रसाद जैन (दिगम्बर समाज के प्रतिष्ठित नेता ) बनायें गये । प्रतिनिधित्व की लड़ाई भ्रभी समाप्त ही हुई थी भ्रौर हमने 'एकता' के लिये प्रयास प्रारम्भ ही किये थे कि अध्यक्ष ने एक सुकाव रखकर तीनथुई समाज को इस महासमिति में प्रतिनिधित्व दिया किनन्‍वु “सराक जाति' को इस समिति में प्रतिनिधित्व क्‍यों नहीं दिया गया ? महाबोर का सवसान्य चिता क्यों नहीं भयवान महावीर के इस पावन समारोह प्रसंग पर प्रदर्शनाथ एक सर्वेमान्य चित्र भ्राज तक क्यों नहीं स्वीकार हुआ । महासमिति ने १२ जुलाई, १९६७४ की बैठक में यह सर्वेसम्मत निर्णय लिया था-- ं “भगवान महावीर के पदमाखन में विराजमान तथा वस्त्रहीन चित्र का व्यापक उपयोग किया जाय । इसके लिये भगवातशी की एक प्रभावशाली




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