महावीर जयन्ती स्मारिका | Mahavir Jayanti Smarika

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Mahavir Jayanti Smarika  by भँवरलाल पोल्याका - BHANWARLAL POLYAKA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तहिसा किसी जंगल में एक भयानक साँप रहता था । एक बार एक सन्त उसके पास से गुजरे । साँप उनके पाँवो में लौटकर श्रपने उद्धार की प्रार्थना करने लगा । सन्त बोला--“किसी को काटा मत कर, तेरा भला होगा ।” सॉप ने काटना छोड़ दिया । उसके इस परिवतंन की चर्चा दूर-दूर तक फेल गयी । नतीजा यह हुम्रा कि दुष्टजन उसे लकड़ी, पत्थर इत्यादि से मार-मार कर सताने लगे । एक बार वही सत फिर उधर से निकले । साँप ने श्रपनी दुःख-गाथा बयान की-- “महाराज, भ्रापने भ्रच्छा उपदेश दिया, मेरा तो जीना ही मुहाल हो गया ।”” सन्त बोले-“भाई ! मैंने तुकसे काटने के लिए मना किया था; यह कब कहा था कि तू फूफकारना भी मत ।”




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