श्रीजम्बूस्वामी चरित्र | Shreejambuswami Charitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दीपचन्द्र जी वर्णी - Deepachandra Ji Varni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
ग्और वे यह कीतुक देखनेकों वहीँ एकत्र हो आये |
इसी समय शिवकुमार नाम राजपुत्र भी वहां छाया और
मुनिको देख मोहयुक्त दो विनय सहित नमस्कार कर मोह उत्पन्न
होनेका कारण पूछा । तब उसे स्वामीने पूर्व भवॉंका दृत्तात सुनाया |
सुनते ही रानपुत्रको मूर्छा आ गई । यह दृत्तात मत्रियोंने जाकर
रानासि कहा और राजपुत्रको उपचार वर सचेत किया | राजा
रानी सहित तुरंत ही वहाँ आये, थीर पुत्रक़ो घर ले भाने लगे ।
तब शिवकुमार बोढे-'' हे पिता ! ये भोग भुजगके समान है,
क्षणमंगुर हैं। भें अब घर न नाऊंगा, किन्तु मद्दात्रत लेकर यहाँ
ही गुरुके निकट स्वात्माचुमव करूँगा । ”
तब राजा बोठे-'पुत्र ! अभी तुम्दारी बाल्यावस्था हैं, कोमठ
झुरीर है, जिनदीक्षा अतिदुषर हैं, इसछिये कुछेक दिन राज्य
कर हमारे मनोरथोंको पूण करो । पीछे अवसर पाकर त्रत ढेना !
यह अवस्था तप करनेकी नहीं है । इत्यादि नाना प्रकार रानाने
समझाया परंतु भ्च देखा कि कुमार मानते हो नहीं ठव लाचार
हो कइने छगे-
पुत्र! यदि तुम्हें ऐसा ही बरना हे, तो मुनिद्रत न लेकर
सुल्ढकके हो बत लो और यदि रेसा न करोगे तो में प्राणत्याग
करूंगा । तव छिंवकुमारन माता पिताके वचनाबुसार छुड्कके घ्रत
लिये। घर हो रहकर चौसठ हृनार वर्ष तक केवल मात सौर
यानीका आद्वार कर निरतर घर्मध्यानमें काल व्यतीत किया मौर
सायरचन्द्र मुनि यदाँसे विद्वार करके उम्र तप करते हुए समाधिम-
रणकर घ्योत्तर छवें स्व में देव हुए अर शिवकुमार छुछ्कक थी
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