विमल विनोद | Vimal Vinod

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) “करपे, कपटानन्द मन्वन्तरे, महाकलियुगे, प्रथम.. चरणे, : जंबू ट्वीपे, भरत क्षेत्र, अजमेर नगरे, व्तेमान .नाम संघ- त्सरे, .अमुकायने, असुककऋतो,. अयुक मासे, . कुष्णपक्ने, ' नरक दिया, छुलुधवार नक्षत्र योगकरणे, श्रीमद्धत्तांनन्द कृत मिथ्याथघ्रकाश अतिपादित फल. माप्त्यथ आयंगोत्रो, वेधवा पुत्रो, ब्रह्मानन्द दमोह, . सर्वाधर्म शाखस्य अति निन्दन रूप ऐश्वयस्य प्राप्ति.कामनया मिथ्यानंद मसचन हेतवे सर्व घर्मवणान, एकीकृत्य . पूजनमहँ करिष्ये, ( यदद पढ़कर संकरप छोड़ा ) ** आवाहन मंजर * भो ! अनादि माग विध्वंसकस्‌,*मूर्तिपूजनशाख्रादि निव- कस, वर्णशंकर गोत्र मवत्तकसू, विधवा विवाह कारकमू थी भरी अनेक रंगर्भगाचाय, दभानन्द॑ आवाइयापि, भोदेंभानन्द ! इदागच्छ ! सुपतिष्ठ कुचरदो भव ! मम कुपूजां ग्द्दाण भगवदंभानन्दाय नमः ॥ ( इतना पढ़कर ** ब्रह्मानन्द *”” पोडशोपचार पूजनके मंत्र पढने लगाकि इतनेंपें जज्जसाइव शांरदाचद्रसे बोले ) जज्जसाहब-अजी शारदाचंद्रजी ! वाह ! ये कैसी बाहियात श्रुतियां उच्चारण करनी शुरू की हैं ? तुमको ( इतने बुड़े और दाना दोने पर ) जानवूज कर सैंकड़ो औरतों और आदमिओंक्े बीचमें ऐसा काम करवाते दरम नहीं आती ! चारदाचंद्र-( जरा मूंह बनाकर । दस साहब मेरी ' मरजी, १




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