विमल विनोद | Vimal Vinod
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
“करपे, कपटानन्द मन्वन्तरे, महाकलियुगे, प्रथम.. चरणे,
: जंबू ट्वीपे, भरत क्षेत्र, अजमेर नगरे, व्तेमान .नाम संघ-
त्सरे, .अमुकायने, असुककऋतो,. अयुक मासे, . कुष्णपक्ने,
' नरक दिया, छुलुधवार नक्षत्र योगकरणे, श्रीमद्धत्तांनन्द
कृत मिथ्याथघ्रकाश अतिपादित फल. माप्त्यथ आयंगोत्रो,
वेधवा पुत्रो, ब्रह्मानन्द दमोह, . सर्वाधर्म शाखस्य
अति निन्दन रूप ऐश्वयस्य प्राप्ति.कामनया मिथ्यानंद
मसचन हेतवे सर्व घर्मवणान, एकीकृत्य . पूजनमहँ करिष्ये,
( यदद पढ़कर संकरप छोड़ा )
** आवाहन मंजर *
भो ! अनादि माग विध्वंसकस्,*मूर्तिपूजनशाख्रादि निव-
कस, वर्णशंकर गोत्र मवत्तकसू, विधवा विवाह कारकमू
थी भरी अनेक रंगर्भगाचाय, दभानन्द॑ आवाइयापि,
भोदेंभानन्द ! इदागच्छ ! सुपतिष्ठ कुचरदो भव ! मम
कुपूजां ग्द्दाण भगवदंभानन्दाय नमः ॥ ( इतना पढ़कर
** ब्रह्मानन्द *”” पोडशोपचार पूजनके मंत्र पढने लगाकि
इतनेंपें जज्जसाइव शांरदाचद्रसे बोले )
जज्जसाहब-अजी शारदाचंद्रजी ! वाह ! ये कैसी बाहियात
श्रुतियां उच्चारण करनी शुरू की हैं ? तुमको ( इतने बुड़े
और दाना दोने पर ) जानवूज कर सैंकड़ो औरतों
और आदमिओंक्े बीचमें ऐसा काम करवाते दरम
नहीं आती !
चारदाचंद्र-( जरा मूंह बनाकर । दस साहब मेरी ' मरजी,
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