सबै भूमि गोपाल की | Sabai Bhumi Gopal Ki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला--गुष्से ने मार डाला, मगवन्.! ( श्र जोर से रोने लगता है
छुरियाँ भोक-मौककर, घाव करूकर, अग-पत्यग काट-काटकर मार
डाला, आचार्य ! ( सिसकने लगता है )
विनोबा--शान्त हो, बन्घओ, शान्त हो । किसने मार डाला. क्यो
मार डाला १ पूरा हाल बताओ ।
पहला--साम्यबादियों। ने, देव ! हमारी जमीन के छिखे ।
विनोबा--अच्छा, समझा । कुछ दिनो से तेलगाने से इसी तरह की
खबरें मिल रही हैं । भूमिद्दीन भूमिपतियों की जमीनों पर कब्जा करने के
लिए. वहाँ मार-काट कर रहे हैं। अपका कुटम्ब भी खिसीका शिकार
हो गया |
दूसरा--पर मददाराज, भूमिपतियों ने किसीकी भूमि चोरी कर या
डाका डालकर हरण नहीं की है । कानून के अनुसार वे जपीन के मालिक हैं |
पहला--और फिर, आचार्य, बेचारी स्त्रियां और नन्हें-नन्दें भच्चे
तो सुख जमीन के मालिक भी न थे । आद! किस तरह * * * किस करता
से मारा गया है अुन्हें !
विनोबा-मैंनि सुना, वहाँ अनेक घर्से और कुट्टम्बो का यही हवाढ
हुआ है ।
पहला--दइजारों घरों और कुडम्बें का आचार्य । सरकारी आँकढ़ों के
अनुसार आहतों की सख्या तीन हजार है, पर यथार्थ में दस इजार के भी
अपर है !
पदला--और करोड़ों रुपया खर्च करने पर भी सरकार स्थिति को
काबू मे न ला सकी |
दूसरा--हँ, साम्यवाटी भूमिपतियों को मार-काटकर मुनकी सूमि ले,
जिनके पास भूमि नहीं है, उनको देते हैं । जब सरकार को खिसकी खबर मिलती
है, सरकारी पुलिस और फौ्जें वहां पहुँच मिनसे भ्रूमि छीन, फिर से जिनकी
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