सबै भूमि गोपाल की | Sabai Bhumi Gopal Ki

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sabai Bhumi Gopal Ki by गोविन्ददास - Govinddas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गोविन्ददास - Govinddas

Add Infomation AboutGovinddas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहला--गुष्से ने मार डाला, मगवन्‌.! ( श्र जोर से रोने लगता है छुरियाँ भोक-मौककर, घाव करूकर, अग-पत्यग काट-काटकर मार डाला, आचार्‌य ! ( सिसकने लगता है ) विनोबा--शान्त हो, बन्घओ, शान्त हो । किसने मार डाला. क्यो मार डाला १ पूरा हाल बताओ । पहला--साम्यबादियों। ने, देव ! हमारी जमीन के छिखे । विनोबा--अच्छा, समझा । कुछ दिनो से तेलगाने से इसी तरह की खबरें मिल रही हैं । भूमिद्दीन भूमिपतियों की जमीनों पर कब्जा करने के लिए. वहाँ मार-काट कर रहे हैं। अपका कुटम्ब भी खिसीका शिकार हो गया | दूसरा--पर मददाराज, भूमिपतियों ने किसीकी भूमि चोरी कर या डाका डालकर हरण नहीं की है । कानून के अनुसार वे जपीन के मालिक हैं | पहला--और फिर, आचार्य, बेचारी स्त्रियां और नन्हें-नन्दें भच्चे तो सुख जमीन के मालिक भी न थे । आद! किस तरह * * * किस करता से मारा गया है अुन्हें ! विनोबा-मैंनि सुना, वहाँ अनेक घर्से और कुट्टम्बो का यही हवाढ हुआ है । पहला--दइजारों घरों और कुडम्बें का आचार्य । सरकारी आँकढ़ों के अनुसार आहतों की सख्या तीन हजार है, पर यथार्थ में दस इजार के भी अपर है ! पदला--और करोड़ों रुपया खर्च करने पर भी सरकार स्थिति को काबू मे न ला सकी | दूसरा--हँ, साम्यवाटी भूमिपतियों को मार-काटकर मुनकी सूमि ले, जिनके पास भूमि नहीं है, उनको देते हैं । जब सरकार को खिसकी खबर मिलती है, सरकारी पुलिस और फौ्जें वहां पहुँच मिनसे भ्रूमि छीन, फिर से जिनकी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now