मृत्यु जो अमृत बनी | Mrityu Jo Amrit Bani

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Mrityu Jo Amrit Bani by मुनि किशनलाल - Muni Kishanlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चामत्कारिक समाधि मृत्यु ले --युगप्रधान आचा्थ श्रीतु्सो मेरी सहज प्रकृति है कि स्वच्नों, देवी-देवताओं की घटनाओं थ ज्योतिपियों को बातों पर अधिक विश्वास नहीं करता ।. मब्यस्थ-मृत्ति से कोई कुछ कहता है तो सुन छेता हूं, पर, उसे बिधेष महत्व नहीं देता, व्योंकि मुझे पुश्पार्थ पर अधिक विश्वास है। मेरी मान्यता रही है कि निमित्त कोई भी वतन सकता हैं, पर अस्ततः व्यक्ति का पुरुपार्थ ही उसे लक्ष्य तक पहुंचाता है 1 ४. स्वर्गीय वहिंन प्रवोणा ने बड़े साहस के साथ अपनी सारी स्थिति मेरे सामने रखी, पर, अपनी सहज प्रकृति के अनुसार सुझ उस पर सहसा विश्वास नहीं हुआ । विश्वास होता भी कैसे ? जबकि उसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं । मैंने सोचा कि वहिंनों की यह सहज आदत होती है कि स्वप्तों की सभी बातो को प्रायः सत्य मान छेती हैं। संभवत: इते भी कोई स्वप्र आया हो; पर कह की घटना से मेरे विचारों में थोड़ा पण्वितन माया है। सोचता हूँ कि बहिनों की हर बात पर इतना अविश्वास नहीं करना चाहिये 1 मुझे अत्पस्त प्रसन्नता है कि बहिन प्रवीधा ने समाधि मरण को प्रात ््व है । मृत्यु के वाद भो उसके चेहरे को लाइ़ति यह नहीं कह [दे ]




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