ब्रज - लोक - साहित्य का अध्ययन | Braj - Lok - Sahity Ka Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
111 MB
कुल पष्ठ :
613
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही
हा
रे
छ
री
हक
हा
कग्
या. के,
हि
द नयी
थे
सह,
का
का
अ्जलौक- साहित्य का अध्ययन )
शिल्प, दूसरे शब्दों में, जानपद्जन की भौतिक के साथ-साथ बौद्धिक
संस्डृति भी । मुख्यतः: टेलर; फ्रेंजर, तथा अन्य अंग्रेज पद-
+ वैज्ञानिकों के उद्योगों के परिणामस्वरूप, जिन्होंने यूरोपीय जानन-
जन के मूढ्याहों और परम्परागत रीतिरिवाजों की व्याख्या करने के
लिए तथा उन्हें सममंधनि के लिए निम्नस्तर की संस्इति में मिलने वाले
सीस्य के उपयोग करने की ओर विशेष ध्यान दिया, अप्रेजी परम्परा
में फोकलॉर ( लोकवाता ) के क्षेत्र तथा सामाजिक जीवन-विज्ञान के
तेत्र की कोइ सूच्म सीमा निर्धारित नहीं की जाती””'''प्रयोग में
साधारण प्रवृत्ति इस फोकलोर ( लोकवाताी ) के क्षेत्र को संकुचित
अंधे में सभ्य समाजों में मिलने वाले पिछड़े तत्वों की संस्इति तक ही
सीमित रखने की है ।”
किन्तु इससे भी अधिक वैज्ञानिक परिभाषा शालंट सोफिया
बन ने दी है। उन्होंने भी इसका संक्षिप्त इतिहास दिया है । वह
कहती हैं कि लोकबाती शब्द, शब्दार्थत: लोक की विद्या ( दी लनिऑ्ञ
.... आव दी पीपिल )--१८४६ में स्व० श्री डवल्यू० जे० थॉमस ने पहले
ं प्रयोग में आने वाले 'सावंजनिक पुरादृत्त' ( पापुलर
एस्टिक्िटीज़ ) शब्द के लिए गढ़ा था। यह एक
लोकवार्ता .
विषय जांति-बोधक शब्द की भाँति . प्रतिष्ठित हो गया है
जिसके अन्तगंत. पिछड़ी जातियों में प्रचलित अथवा
. झपेक्ताकृत समुन्नत जातियों के डसंस्कृत समुदायों में 0 घर
विश्वास, रीति-रिवाज, कहानियाँ, गीत तथा कहाबतें श्राती
प्रकृति के चेतन तथा जड़ जगत के सम्बन्ध में, मानव-स्वभाव
तथा मनुष्य कृत पदार्थों के सम्बन्ध में, भूतप्रेतों की दुनिया तथा
उसके साथ मनुष्यों के सम्बन्धों के विष॑य में; जादू, टोना, सम्मोहन,
वशीकरण, ताबीज, भाग्य, शकुन, रोग तथा सत्यु के सम्बन्ध
में आदिम तथा. असभ्य विश्वास इसके क्षेत्र में आते हैं। और भी
.। .... इसमें चिघाह, उत्तराधिकार, बाल्यकाल तथा प्रौढ़ जीवन के रीति-रिवाज
: .... .”. तथा अनुष्ठान और त्यौहार; युद्ध, आखेट, मरतस्य-ब्यवसाय, पशु-पाललन
_ त्ादि विषयों के भी रीति-रिवाज और अनुहान इसमें आते हैं तथ।
धंमगाथायें; अवदान ( लीजंड ); लोक कहानियाँ; साके ( बेलेड )
User Reviews
No Reviews | Add Yours...