गुर्जर जैन कवियों की हिंदी साहित्य को देन | Gurjar Jain Kaviyo Ki Hindi Sahitya Ko Dain
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सतत्त प्रेरणा सर्वाधिक मार्गदर्शन तथा स्नेह प्राप्त करने का. सौभाग्य मुझे मिला है ।
उनकी स्नेह एवं सहानुभूति से परिपूरित भात्मीयता ने मेरे इस दुर्गम पथ को सुगम
वनाया है । 'पुरोवाक' लिखकर भापने इस प्रबन्ध के गौरव को विशेष बढ़ा दिया है ।
मैं उनके प्रति अपनी हार्दिक कृत्त्ता प्रकट करता हूँ । इसके अतिरिवतत भावों को
औपचारिक रूप देना संभव भी तो नहीं ।
इसे मैं अपना सौभाग्य ही समझता हूँ कि जैन साहित्य ममंज्ञ, प्रकाण्ड-पंडित,
दार्यनिक एवं प्रखर चिंतक वयोवृद्ध पंडित वेचरदास जी ने अधिकारिक प्रस्तावना
लिखकर इस शोध-प्रवध को विद्वेप गरिमा प्रदान की है। प्ररतावना के ये शब्द ऐसे
समय लिखे है जब आपका अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एकलौता युवा पुत्र भापकी
जीवन नैया को डगमगाती छोड़ इस संसार से विदा ले गया हो--निश्चय ही यह
उनकी दार्शनिक प्रतिभा, साक्षीत्व एवं व्यक्तित्व की महानता है । आपकी इस महती
कृपा के लिए मैं हार्दिक कृतन्नता जापित करता हूँ ।
पूजनीय डॉ० सरनाम सिंह गर्माजी के सत्परामर्गों से भी मैं विग्ेप लाभाँदित
हुआ हूँ । उनके सुझावों के फलस्वरूप ही मैं अपना वोघ-प्रवन्ध आज इस रूप में
प्रस्तुत कर सका हूँ । मैं भापका जितना भाभार मानू' उतना ही कम है ।
गुजरात के जैन संतों का अध्ययन करते समय जैन दर्णन एवं. साहित्य के
मर्मज्ञा श्री दलसुग्वमाई मालवणीयाजी, पंडितवर सुखलालजी, मुनि श्रीपुण्य-विजयजी,
श्रीअगरचन्द नाहटाजी, डॉ० कस्तुरचन्द कासलीवालजी, पं चैनसुखदासजी, डॉ० भोगी-
लाल सांडेसराजी, थी के० का० शास्त्रीजी, श्री मानुविजयजी, श्री कांति सागरजी
आदि ने अपने अमूल्य सुझाव देकर मेरा कार्य सरल एवं सफल वनाया है, इन विद्वानों
को मैं हार्दिक नमन करता हूँ ।
श्रद्धय डॉ० रामेश्वरलाल खण्डेलवालजी तथा डॉ० श्रीराम नागरजी की मुझ
पर निरन्तर कृपा दृष्टि रही है । उनका आत्मीय प्रोत्साहन तथा कृपा के फलस्वरूप ही
शोधकार्य यथा समय पूर्णकर आज यहाँ तक पहुँच सका हूँ । इसके लिए आभार भी
क्या ज्ञापित करूँ ? इन विद्वानों के अतिरिक्त डॉ० रणघीर भाई उपाध्याय, डॉ०
सुरेशमाई न्रिवेदी, डॉ० डी० एस० शुक्ल, डॉ० कृष्णचन्द्र श्रोचीय, श्रीनारायण सिंह
भाटी, डॉ० श्री सेवन्तीलाल चाह, आचार्य एच०सी ० त्रिवेदी, आचाये वी० एस०
वणीकरं, आचार्य वाबुमाई पटेल, प्रो० कानजी भाई पटेल आदि ने भी सहदयता पूर्वक
प्रोत्साहन देकर मुझे विशेष लामान्वित किया है । अतः इन विद्वानों के प्रति आभार
व्यक्त करना अपना धर्म समझता हूँ । इस प्रसंग पर मै अपनी माठृसंस्था एवं संस्था
के प्रमुख सेठ श्री चुलसीदास साई, मंत्री श्री जीवणभाई तथा भाई चन्द भाई वकील के
' प्रति भी भाभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने प्रेरणा व. प्रोत्साहन ही नहीं अन्य विशेष
सुविधाएँ भी प्रदान कर मुझे लाभान्वित किया है ।
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