जै साहित्य का बृहद तिहास | Jai Sahity ka brihad tihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Jai Sahity ka brihad tihas by वेचरदास दोशी - Vechardas Doshi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वेचरदास दोशी - Vechardas Doshi

Add Infomation AboutVechardas Doshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( २० ) के श्रवशेप श्रव तो भारत के कई भागी मे मिले है--उत्ते देखते हुए उप्त श्राचीन सस्कृति का नाम सिन्युसस्क्षति श्रव्यात्त हो जाता है। वैदिक सस्क्ृति यदि भारत के वाहर से आने वाले श्रार्यो की सस्कृति है तो सिन्बुतस्क्ृति का यथार्थ नाम भारतीय सस्क्ृति ही हो सकता है । श्रनेक स्थलो में होनेवाली खुदाई में जो नावा प्रकार की मोहर मिली हैं उन पर कोई न कोई लिपि मे लिखा हुआ भी मिला है। वह लिपि सभव है कि चित्रलिपि हो। किस्तु दुर्भाग्य है कि उस लिपि का यथायं वाचन भ्रमी तक हो नहीं पाया है। ऐसी स्थिति मे उसकी भाषा के नियमे बुद्ध भो कहना सभव नहीं है। भौर वे लोग अपने धम को क्या कहते थे, यह किसी लिखित प्रमाण से जानना सभव नही है । किन्तु श्रन्य जो सामग्री मिली है उस पर से विद्वानों का अनुमान है कि उन प्राचीन भारतोय संस्कृति में योग को श्रवत्य रथान था । यह तो हम अच्छी तरह से जानते हैं कि वैदिक झार्या मे वेद और ब्राह्ममकाल में योग की कोई चर्चा नहीं है। उनमे तो यज्ञ को ही महत्त्व का स्थान मिला हुआ है। दूसरी ओर जैन-बीद्ध मे यज्ञ का विरोध था और योग का महत्त्व! ऐसी परिस्थिति मे यदि जैनबर्म को तथाकथित सिन्दुसरक्ृति से भी सबद्ध किया जाय तो उचित होगा । श्रव प्रदत्त यह है कि वेदकाल मे उनका नाम क्या रहा होगा ? श्रा्यों ने जिनके साथ युद्ध किया उन्हे दास, द थू जैसे नाम २थि हैं। किन्तु उससे हमारा काम नहीं चलता । हमे तो यह शब्द चाहिए जिससे उस सस्क्ृति का बोध हो जिसमे योगप्रक्रिया का महत्व हो । ये दास-इस्यू पुर मे रहते थे और उनके पुर का नारा करके श्रार्यो के मुखिया इन्दर ने पुरन्दर की पदवी को प्राप्त किया । उसी इख्र ने यतियों भौर भुनियो की भी हत्या की है--ऐसा उत्लेख मिलता है (अथव० २ ४ ३ )। अधिक सभव यही है कि ये मुनि और यति र्दे छन मूल भारत के निवाक्षियो कौ सस्ति के सूचक है श्रौर इन्दी सन्दा को वेप प्रतिष्ठा जैनसस्कति मे प्रारभ से देखो भी जाती है । श्रतएव यदि जैनधर्स का पुराना ताम यतिधर्स या मुनिधर्म माना जाय तो इसमे आपत्ति को बात न होगी । यति भर सुनिधर्म दी्घकाल के प्रवाह मे वहता हुआ कई शाखा-अशासाओ में विभक्त हो गया था। यही हाल वैदिकों का भी था। श्राचीन जैन श्रौर बौद्ध शास्तों में वर्मो के विविध प्रवाहों को सूउबद्ध करके श्रमण और ब्राह्मण इन दो विभागों मे बाठा गया है। इनमे ब्राह्मण तो वे हैं जो वैदिक ससस्‍्क्ृति के अनुयायी हैं भौर शेप सभी का समावेश श्रमणों में होता था। श्रत्तएव इस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now