निशा निमत्रण | Nisha Nimantaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समस्त जन समूह क़ुड् कठस्वर से एक साथ चिल्लाने लगा,
“मदिर का द्वार खोलो, खोलो । पुजारी का हाथ कितनी बार सॉकल
तक जा-जाकर लौट आ्राया ।
हजारों दाथ एक साथ मंदिर के कपाट को पीटने लगे, धक्के देने
लगे । देखते ही देखते चदन का द्वार टूटकर गिर पड़ा; भक्तगणु
मदिर में घुस पड़े । पुजारी झ्रपनी आझाँखें मूंदकर एक कोने में खड़ा
हो गया ।
देवता की पूजा होने लगी । बात की बात में देवता फूलों से लद
गए, फूलों मे छिप गए, फूलों से दब गए ! रात भर भक्तगण इस पुष्प
राशि को बढ़ाते रहे ।
और सवेरे जब्र पुजारी ने फूलों को हटाया तो उसके नीचे थी
देवता की लाश |
( र.,)
अब भी प्रथ्वी पर मनुष्य था; मनुष्य में दृदय था, छृदय में पूजा
की भावना थी, पर देवता न थे। अब भी वह सूर्य को ्रव्यंदान देता -
था, अधि को हविष समर्पित करता था, पर अब उसका असतोष पहले
से कहीं अधिक था । एक बार देवता की प्राप्ति ने उसकी प्यास जगा
दी थी, उसकी चाह बढ़ा दी थी । वह कुछ और चाहता था ।
मनुष्य ने अपराध किया था ओर इस कारण लजित था । देवता
की प्राप्ति स्वर्ग से ही हो सकती थी, पर वह स्वर्ग के सामने जाए,
किस मुँह से । उसने सोचा, स्वर्ग का हृदय महान है; मनुष्य के एक
अपराध को भी क्या वह कसा न करेगा ।
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