निशा निमत्रण | Nisha Nimantaran

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Nisha Nimantaran  by महादेव देसाई - Mahadev Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समस्त जन समूह क़ुड् कठस्वर से एक साथ चिल्लाने लगा, “मदिर का द्वार खोलो, खोलो । पुजारी का हाथ कितनी बार सॉकल तक जा-जाकर लौट आ्राया । हजारों दाथ एक साथ मंदिर के कपाट को पीटने लगे, धक्के देने लगे । देखते ही देखते चदन का द्वार टूटकर गिर पड़ा; भक्तगणु मदिर में घुस पड़े । पुजारी झ्रपनी आझाँखें मूंदकर एक कोने में खड़ा हो गया । देवता की पूजा होने लगी । बात की बात में देवता फूलों से लद गए, फूलों मे छिप गए, फूलों से दब गए ! रात भर भक्तगण इस पुष्प राशि को बढ़ाते रहे । और सवेरे जब्र पुजारी ने फूलों को हटाया तो उसके नीचे थी देवता की लाश | ( र.,) अब भी प्रथ्वी पर मनुष्य था; मनुष्य में दृदय था, छृदय में पूजा की भावना थी, पर देवता न थे। अब भी वह सूर्य को ्रव्यंदान देता - था, अधि को हविष समर्पित करता था, पर अब उसका असतोष पहले से कहीं अधिक था । एक बार देवता की प्राप्ति ने उसकी प्यास जगा दी थी, उसकी चाह बढ़ा दी थी । वह कुछ और चाहता था । मनुष्य ने अपराध किया था ओर इस कारण लजित था । देवता की प्राप्ति स्वर्ग से ही हो सकती थी, पर वह स्वर्ग के सामने जाए, किस मुँह से । उसने सोचा, स्वर्ग का हृदय महान है; मनुष्य के एक अपराध को भी क्या वह कसा न करेगा । [ १६




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