इतिहास साक्षी है | Itihas Sakshi Hai
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.72 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवत शरण उपाध्याय - Bhagwat Sharan Upadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० इतिहास साक्षी है वह उपनिषद्-काल था जब राजाओको भूमि जीतनेकी तृष्णा भूमिकी उपलब्धिसे मिट चली । तब एक दूसरी तृष्णाने उनके भीतर घर किया । वह तृष्णा थी ज्ञान-विजयकी । अब उन्होने ज्ञानके क्षेत्रमे अपना साका चलाना चाहा और चलाया भी । राजाओके दरबार तब ज्ञानके अखाडे बन गये । और उनमे ऋषियों और ब्रह्मवादियोके दास्त्रार्थ होने लगे । अबके ज्ञान-गुरु ब्राह्मण नहीं क्षत्रिय थे और वह भी क्षत्रिय राजा । उन्होने प्रजाका रुख एक दूसरी ओर फेर दिया जिसका न कोई दारीर था न कोई आकृति थी जो न खाता था न खिलाता था फिर जो सर्वदाक्ति- मान् था और जिसे ब्रह्म कहते थे । इन्द्रको मास और सुरासे छकाने- वाले भौतिक सबलवाले बेचारे ब्राह्मणोको भला इस नये अदयरीरी ब्रह्मा और उसके अनुचर आत्माका बोध कैसे होता ? उनके इन्द्रका जॉल इस नये ब्रह्मके इन्द्रजालसे कट गया और कर्मकाण्डका सारा आधार ही नष्ट हो गया । अब उनके लिए सिवा इसके कोई चारा न था कि वे राजाओंके अनुयायी बनते उनके द्वारा आयोजित दरबारी शास्त्रार्थोमे भाग लेते । देदामे ऐसे दरबारी अखाडोकी सख्या चार थी--पजाबमे केकय गगा- यमुनाके द्वाबमे पचाल काशी--जनपदमें काशी और उत्तर बिहारमे मिथिला । इनमे सबसे पूरबका दरबार जनक विदेहका मिथिलामे था । राजा जनक जो रामचस्द्रके ससुर और जानकीके पिता थे वे सीरध्वज जनक थे विदेह जनकसे भिन्न और बहुत पहिलेके । परन्तु विदेह जनक उनसे महान् माने गये क्योकि उन्होंने विदेह जातिकी जनताका नाम विरुदके रूपमे धारण कर उसे ऐसा रूप दिया जो ब्रह्मज्ञानी ऋषिका बाना बन गया--देह रहते उसने उन्हें विदेह अर्थात् जीवन्मुक्त बना दिया यद्यपि वह उतने ही पाथिव थे जितने उनके विदेहभिन्न अनुयायी । क्योकि कहा जाता हैं कि एक पैर जहाँ उनका सिहासनपर रहता था वही दूसरा जगलमे रहता था--काथ कि कोई समझ पाता कि चाहे उनका एक पैर जगलमे उहता रहा हो दूसरा नि सदेह सिहासनपर जमा रहता था ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...