हिन्दी - रसगंगाधर | Hindi Rasagangadhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ बन पड़ा लिख ही दिया है। इसके लिखने में भी हमें श्रपनी परिस्थिति के कारण अत्यंत कष्ट उठाना पड़ा है । हम श्राशा करते हैं कि हमारे गुणम्राहक विद्वान हमारी श्रस्पज्ञता श्र परिस्थिति को सममकर तथा भगवान्‌ श्री क़ृष्णचंद्र की इस उक्ति को स्मरण करके कि ““सवांर॑भा हि दाषेण धूमेनासिरिवावृता:”' दोषों पर दृष्टि न देंगे श्रेर हमें चामा करेंगे । 'विषय विवेचन” प्रकरण में जो झ्ाचार्यों के काल लिखे गए हैं, वे प्रायः म०म० श्रोदुर्गाप्रसादजी ट्रिवेदी की साहित्यदर्पश की भूमिका से श्रोर श्रोसुशीलकुमार दे, एम० ए० के “संस्कृत पोयूटिक्स' से लिए गए हैं, एतदर्थ उन्हें धन्यवाद है । अडचन झ्रनुवाद करने में हमें झनेक भ्रड़चनें भी उपस्थित हुई । सबसे बड़ी अड़चन तो यह थी कि इस अंध पर कोई विवेचना- पूर्ण श्रौर विशद व्याख्या नहीं है, केवल नागेश भट्ट की गुरुममे- प्रकाश नामक टिप्पणी है, जिसमें उसके नामानुसार मोटे मोटे मम्मी पर प्रकाश डाला गया है; श्रत: अधिकांश स्थलों की विवेचना का भार इस अत्पज्ञ की तुच्छ बुद्धि पर दी था पड़ा । दूसरी श्रड़चन यद्द थी कि यद्द पंथ श्रब तक दो स्थानों से प्रकाशित हुआ है । एक काशी से श्रौर दूसरा “काव्यमाला' में बंबई से । पर, न जाने क्यों दोनों दी संस्करण स्थान स्थान पर ध्रुद्ध हैं। काशीवाला संस्करण ते मुद्रशोपयागी




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