बौद्ध और जैन आगमों में नारी - जीवन | Bauddh Aur Jain Agamo Men Nari Jivan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(1४) ( स्पवटार ) दसाधुयववध ( दशाशुदस्त थे है, कप ( केय अगवा वदूस्कसप ठ जोयवप्प ( जातुवरर ) 1 (ह) ४ सूखसूच--उत्तरज्सयंग ( उत्तराध्ययन ), दमवमालिय ( दशवका व ) आवस्मय ([ आवदयक ) पिष्डनिज्जुत्ति ( पिण्डनियुविठ कै व) रे चूटिकासूब्--नन्दा तथा बणुओगटार ( बनुधोगद्वार ) । प्रघ का वियास-- अस्तुत प्रबंध ६ अध्याया में विमक्त है जिसमें मारो के बाय जीवन से लेकर बृद्धावस्था तब का वन किया गया हूं 1 प्रथम अध्याय में पुषी की अवस्था दा चित्रण किया यया हू। पुरी क ज मे पर हान वालों सामाजिक प्रतिक्रिया बचपन, विवाहसम्ब धो देष्टिकाण का प्रभाव धामिक प्रवृत्ति आदि विपय प्रथम बध्याय में ब्णित हु । रितीय अध्याय में विवाह का वधन हू । विवाह के विपप में परिवतित दृष्टिाण एवं उनका समाज पर प्रमाव विवाईयोग्य आयु अर्थात्‌ वर एव कया की बिवा योग्य बय आलि इस अध्याय के मुख्य दिपय हु। सीसरे पध्याय में नारी के वदाहिब-जोवन को चर्चा की गई ह। चूंनि ववाहिकनजीवत में बारी वो अनेक अवस्याएं आता हैं, अत उस सरल एवं सुगम बनाने के लिए उक्त अध्याय मो चार उप विभागा में विमकत किया गया है । प्रयम उपविभाग में पु्रवघू का भवन वर्णित हू । द्वितीय उपविभाग में नारी को गूहेपत्नी सवस्या का विवचन क्या गयां हू जिसमें पतिनपत्नी के पारस्परिक बत्तत्य पत्नों के मेद पतिन्पन!ं बय एक-टूसरे पर प्रमुख ओआटि विपया था वणन हू । ठासरे उपविमाग में जननी थी मदत्ता को बतात हुए उसक प्रति वितधगोक्त हान की परस्पर का उत्ेख विया गया हैं। अस्तिम उपविभाग में विधवा नारा के सामाजिक, बाधिक, एवं घामिक जीवन वा दिवचन डिया गया हैं । उबत प्रदम तीन अच्यायों में ठामाजिग नारियों बा जीवन द्णित हु । 'चतुय अध्याय में नारो के एस वर्गों का बणन है जो अपनों आजीविका वा उपाजन स्वत दरती थों। चू कि इस प्रवार की नारियों में परिघारिका, गणिका एव वश्या वग प्रमुख थे । अन इस अध्याय को तीन उपदिमायों में विमवत कर उनमें क्रम उक्त तानों वर्गों का वणन किया हु। पदम अध्याय में मि दुधानवग का डिसी के मत में ओपनियुक्ति भी इसमें समाविष्ट हू, गोई प्िण्डनियुक्ति में स्थान पर अधनियु्स्त को मानते हूँ ६ देखिए--आपम युग का जनरएन, पृष रेड दिल ८




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