श्री तीर्थङ्कर-चरित्र [भाग २] | Shri Tirthankar-Charitra [Part 2]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
कै,
थातकी खरड द्वीप के पूर्वीय भाग के ऐरावत क्षेत्र में,
श्रि्रा नाम की एक नगरी थी । वहाँ पद्मरथ नाम का राजा
राज्य करता था, जिसने अपने पराक्रम से, अनेक राजाओं को
जीत कर 'झपने वश कर रखा था । राज्य-सम्पदा से सम्द्ध होने
पर भी, पद्यरथ, उसमें फँसा हुआ दी नहीं रद्दा, किन्तु मुक्ति--
लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए उसने, समस्त ऋद्धि दृण के समान
त्याग दी श्मीर चितरक्ष नाम के शुरु के समीप संयम में श्रवर्जित
हो गया । प्रमाद रदित संयम की आराधना करने के साथ दी,
ब्हन्त सिद्ध को भक्ति द्वारा तीथटर नाम का घन्ध किया । अन्त
में, श्ाराधिक थो, प्राणत कर्प के पुप्पोत्तर विमान में, वीस सागर
की स्थिति चाला उक्तप्ट देव हुआ ।
श्रुतिम सब ।
दाग है
जम्यू द्वीप के भरताद्ध में, सरयू नदी के किनारे, 'अयोध्या
नाम की प्रसिद्ध एवं पवित्र नगरी हे । अयोध्या में; इंध्वाकुवंश
के राजा सिंहसेन, राज्य करते थे । सिंदहसेन की रानी का नाम
' सुयशा था, जो श्वसुर एवं पिता के वंश के लिए यश की मूर्ति
के समान थी ।
प्राणत देवलोक के सुख भोगकर 'त्रोर वहाँ का आयुष्य
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