श्रीमद्भागवतीसुत्रम् (भाग - ४) | Shreebhagwati Sutram (Bhaag - 9)

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Shreebhagwati Sutram (Bhaag - 9) by बालचन्द श्रीश्रीमाल - Balchand Shreeshreemal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११६५ ] सूर्याधिकार वैज्ञानिकों ने भी यह स्वीफार किया है कि कई प्रकार का शीत देखा होता है फि'सूर्यादय फे पष तक ठहरता हे । सूयादय शने पर मिट जाता है । कभी-कर्मी ऐसा भी होता दे कि सदी से प्राण जा रहे दों उस समय झपर सूर्योदय दो जाय तो ज्ञाते हुए प्राण रद्द जाते हैं। जब शीत मिट जाय भोर द्धाटो-दर्डी सभी चीज दिखाई देने वमे, तय कदा जाता किं सथ तपरा) दसी का नाम ' तपति है! भले सखये सरडल च दिख पड़तादो, परन्त दोरी-छेष्टी चीजें प्रगर दिखाई देती हा, तव यष्ट फटा जाता दे क्षि सूर्य तपरा हे । तात्पयं यष्हे के गर्मी के प्रभाव से जय सर्य तर्दीकोनष्रफरदेताष्े तथा वारीकतसि बारीक वस्तुएं मी नजर पड़त लगती दै, तव सूर्य कषा तपना कदलाता है। _ নখ यह सूयं का सामान्य-विश्चेष घम दिखाया गया है। लेकिन सख कद्दों प्रकाश करता है, इस सम्बन्ध में गेतस स्वामी ने क्षेत्र फे लिए प्रश्न किया है । गोतम स्वामी के प्रश्त के उद्दर से भगवान्‌ ने फर्मोया या-सूर्य,प्ेष्र ष्टो स्पश करके সক্ষাহা কলা ই, হিলা प्रकाश किये नहीं । इस उत्तर पर यह जिएासा हो सकती है कि सथ ता उपरे, फिर वद्‌ प्रकाशित होने दाटे चेच का स्पश्च फिस प्रकार फरता दे ? सर का समाधान यहे क्षि सर्य नचि नर छता, यर स्त्यष्ट,परन्त्‌ उक्ती पिररश्रोर्‌ प्रकाशतो नीचे शाता हा्ै। स्य, किरणे छर पकाश, यह तीनो सर्पा मिष्-भिन्न वस्तुप सर्दी हं । पपर स्य प्रकाश्मयनहोतातो




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