अनन्त की राह में | Anant Ki Rah Me
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
538
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पूर्णानन्द मिश्र - Purnanand Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श अनन्त की राह में
दद्रदरदानाननद्धमदानदा
द्वारा प्रतिपादित यह धारणा भी छोयों में जड़ जमाए वेठी थी
कि बृत्त ही केवल पूर्ण ज्योमितिक रूप है और क्योंकि आकाश
में पूर्णरूपों के सिवाय कोई और रूप हो ही नहीं सकते इसलिए
इन ग्रहों की भ्रमण-कक्षाओं को घृत्ताकार सानने के सिवाय
कोई और रास्ता भी नहीं था ।
ताल््मी के इस सिद्धान्त में जोड़-तोड़ छगाकर इसके प्रेमी
इसे किसी श्रकार ईसा की सोछहवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक तो
खींच छाये। वीच-वीच में यहां-वद्दां से विद्रोह की शावाजें
उठती तो जरूर रददीं; परन्तु उन्हें कठोरता से दबाकर पनपने
नहीं दिया गया । ईसा की 'चौदुद्दुबीं सदी के चाद ऐसे अनेक
ईसाई पादरियों का उल्लेख सिछता है जो सब; अरस्तू और
ताठमी के सत के विरुद्ध, यह कहते थे कि ऐ्रथ्वी ही वास्तव में
घूम रही है ; कि तारों की दुनियाँ विष्कुछ अढग है और यह
भी कि अनन्त देश में प्रथ्वी की अपनी भ्रमण-कक्षा उन तारों
की दुनियाँ की अपेश्वा अत्यन्त नगण्य है। इनमें पादरी गिओ
डानो ब्रूनो प्रमुख थे। घ्रूनो ने बढ़े साइस के साथ आगे बढ़कर
कहा कि ईश्वर की असीम दया का छुक्ताव ही इस वात की ओर
था कि तारों की संख्या असीम हो | उन्होंने फिर यह तक किया ;
क्योंकि असीम का कोई केस्द्र हो नहीं सकता; इसलिए यह
मानना कि सूर्य अथवा प्रथ्वी ही इस विश्व के केन्द्र दे, विट्कुछ
असज्ञत और अर्थद्दीन दै । कोपार्निकस के सिद्धान्त की अपेक्षा,
जिसका उल्ढेख हम आरे यहीं करेंगे; त्रूनो के मन्तव्यों ने सानव-
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