हिन्दी उपन्यास | Hindi Upanwas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२०१ हिन्दी-उपन्यास पृष्ठभूमि और परम्परा मौर नया साहित्य नये प्रदन १९५५ मे आधुनिक उपन्यास की अनेक ससस्याओ का विवेचन कर उसकी आलोचना को नया आयाम प्रदान किया । विशिष्ट कृतियों एवं कृतिकारों के अतुशीछन में उनके स्वतत्र चिन्तन एव व्यापक दृष्टिकोण की छाप है । आचार्य नलिनविलोचन शर्मा के हिस्दी उपन्यास हिन्दी गद्य की प्रवृत्तिया से उसकी प्रवृत्तियों को समझने में जो सहायता मिलती है वह इस विषय पर लिखित किसी एक पृस्तक से कदाचित ही मिलेगी । साहित्येतिहास मालोच्यकालीन उपन्यास के सिश्रबस्थू रामचन्द्र शुक्ल अयोध्यासिह उपाध्याय रामदशाकर शुव कृष्णशकर शुक्ल छक्ष्मीसागर वार्ष्णय श्रीकृष्ण लाछ और हुजारी प्रसाद द्विवेदी के इतिहास उपादेय है । मिश्रबन्धु विनोद अमूल्य माकर-ग्रथ है । रचनात्मक समीक्षा के पिता आचाय शुक्ल की अभि- रुचि या सहानुभूति उपन्यास की ओर नहीं थी पर उसके सम्बन्ध मे उन्होने जो कुछ लिखा है उसका एक-एक शब्द अथपूर्ण है । स्वय उपन्यास-लेखक होकर भी इरिमौघ जी उसका विस्तृत विवेचन नहीं कर सके तथापि उनके प्रतिपादन मे मौलिकता है । डा० रसाल ने अपने ढंग से उपन्यास-ढेखकों का परिचय दिया है। प० कृष्णशाकर शुक्ल की मीमासा मे सूकष्मता के साथ- साथ स्पष्टता है । डा० वाष्णेय ने उन्नीसवी शताब्दी उत्तराधं के उपन्यास के विषय आर रूप-विधान का अध्ययन प्रस्तुत किया है । डा० लाल ने १९००- २५ के उपन्यास के कला-रूप कथा-शैली और कोटि-क्रम का विकास विल- नण रीति से दिखाया है। डा० वाष्णेंय में वैज्ञानिक तटस्थता है डा० लाल में विदलेषणात्मक आग्रह शोध मे दोनो का समान महत्व है । आधुनिक उप- न्यास के सम्बन्ध मे जो कुछ कहना आवश्यक था वह डा० द्विवेदी ने अपनी निर्मछ शैली में कह दिया है । डा० रामविलास शर्मा का भारतेन्दु-युग भी इतिहास है जिसमे न केवल भारतेंदुयुगीन उपन्यास की विशेषताओं का उद्घाटन हुआ है बल्कि उपन्यास के अध्ययन को नई दिशा मिली है वदिष्ट आलोचना उपन्यास पर विशेष रूप से लिखे गए भालोचना-प्रथो के नाम अंगु- हैँ पर थिने जा. सकते हैं । रघूवीर सिंह का सप्तदीप १९३८ इस 7 का प्रमुख ग्रंथ है जो प्रभावाभिव्यजक होने के कारण आलोचनात्सक




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