विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा | Vidhyarthi Jain Dharma Shiksha

Vidhyarthi Jain Dharma Shiksha by बी. सीतलप्रसाद - B. Seetalprasaad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२०६ न१६३ जद, न न्‌्र्‌ट८ गूंज ० रे रेरेर तर्ज ने २३६ २४३ रण, रे मग्ट रक र७९ नेष9४ [ १८ ] अशुद्ध उबवाधो यः आत्मानुष्ठटाग दुपकरतरे मोक्ी नंहमत चणन सेय्यचिदे पायुनाति नित्य सम्यक अयरी भाषदिमों दातत्पं परिमु साघुमद प्रचृत्ति चिन्नो रजोकुण उप इच्छा या शुद्ध उचवादो येः आत्मानुछ्टान दुप्करतर मोक्षी युद्धमत वणन न सेय्य पिदं पापुनाति अचित्य सम्फफ अपरी भाषद्धि दातव्यं परिभु साधघुपद प्रकृति विद्यो रजोगुण उस इस्डा थी




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