जैन हित शिक्षा | Jain Hit Shiksha
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(न 2)
परम संवेगए ॥ एहवा तुम वच सरस बविलासए ॥।
भ० ॥ ३ ॥ घगी सौठी चक्रौनी खौर ए ॥ वलि खौर
'ससुद्रनो नौर ए ॥। एहधी तुम वच अधिक विसासए ॥।
'भ० ॥४॥ सांभलनें जन बन्द ए ॥ . रोम रोम में पामें
आनंद ए ॥ ज्यारी मिंटों नरकादिक वास ए ॥
भग् ॥ शा तु प्रसु दौन दयाल ए ॥ तु अशरण
शरण निहालए ॥ ह' छ' तुमारो दासए ॥ भ० ॥द॥1
संवत उगयणौसे सोयए ॥ मांद्रवा सूदि तेरस॑ जोय
ए॥ पहु'ची सननी आश ए ॥ भ० पेश
' शी चद्रप्रमुजिन स्तन ।
( शिवपुर नगर खुद्दामणों एदेशी )
हो प्रभु चंद जिनेश्वर चंद जिस्यों ॥ बाय शौतल
चंद सो न्हालहो ॥। प्रभु उपशम रस लन.सांभले ॥।
मिटों कम भ्रम मोह जाल हो ॥ प्रमु० ॥ १ ॥।
एआंकणो ॥ हो प्रभु सूरत सुद्रा सोहनी ॥ - बारु रूप॑
अनुप विशाल हो ॥ प्रभु इन्द्र शचौ लिन निरखती ॥।
तेतो ढप्त न होवे निदालहों ॥ प्रभु० ॥ २ ॥ अही
बौतराग प्रभु तू सर्दी ॥। तुम ध्यावे चित्त रोकडों ॥।
प्रमु तुम तुल्य ते वे ध्यान स्थं ॥ मन पाया परम
संतोष हो ॥ प्रसु ॥ ३॥. हो प्रभु लौन परे तुम
चर
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