श्री जैन - हित - शिक्षा भाग - 1 | Shri Jain Hit Shiksha Bhag-1

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Shri Jain Hit Shiksha Bhag-1 by दुर्जनदास सेठिया - Durjanadas Sethiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) वर जन बह तारिया ॥ तिमिर चरण जग साख ॥ सु० ॥ २ फटिक सिंहासण जिनजो फावता ) तर शोक उदार ॥ छत चामर सामउल' भलकतो ॥| सुर दु'्दमि /ल्तिंगकार ॥ सु० ॥ ३८) पुष्प पुष्टि वर सुर प्पनि दौपती ॥/ साहिब « लग शियगार ॥ अस्त जान दर्शन सुख वल घग 0 ए/दाद्स गुण श्रौकार | सु ॥8॥ बागी/असी सम/ उपशम , रस भरी! दुर्गति सूख कषाय । शिव .. सुखना अरि, शब्दाढ़िक, कच्मा ! लग . तारक लिन राय, सु ॥ ५ ॥ अ'तरजामीरे शरगें आपरे ॥ हूं आयो 'अवधार ॥ लाप - तुमारोरे निश दिन , संभरू' ० ॥ शरगागत सुखकार, ॥॥सु०॥६॥ संवत उगगीसेरे सुद्ी'पक्न भाट़वे ॥ बारस सगलवार सुमलिलिनेश्वर तन मनस्यूं रटया ्ानन्ट उपनों हक अपार | सु० | ७ ॥ ः कं; श्टन पूल स्ताकल 1 (-जिन्दविरी देशी छे खुणभगते भगयन्तसे पुदेशी ) नि्ेष पढ़ा जिसा प्रसु। पढ़ा प्रसु पिछाणर, संयस लौघो लि से ॥। पाया चोघो नाण ॥ “पद्म प्रमु नित्य समरिये ॥ १॥ ए अआकगी ॥ +ध्यान शुक् प्रमु ध्यायनें ॥ पाया कंबल सोय र दौन दयाल तगी




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