व्यवसाय संगठन और प्रबंध | Vyavasay Sangathan Aur Prabandh
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
782
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वाणिज्य तथा उद्योग का विकञात श्प्
उम्ताद (51356615), कारीगर (उ0एह6काएछए ) तथा नवसिखुए (कुछ
हटा दि 0९5) 1 नवमिस्वुआ लटका वा युवक होता या जो काम सीखता या और प्राय
जपने उस्ताद के परिवार के साय रहता था और बदले में अपने उस्ताद को जो सहायता
कर सकता था, करता था । उस कुछ सजदरी सिछ जाती थी । नवसिखुआ अवधि के बीत
जानें के बाद, जा प्राय सात वर्षों क। होती थी, वह युवा जादमी कारोगर हो जाता था
याती एक स्रमणगील श्रमजोव जो मशदइरी के लिए अपने डित्प-सम्बन्धी कार्य
करता था, और अन्त में जब वह इतने पैसे इकट्ठा कर लेता जो उसे जपना कारखाना
खोलने योग्य बना सकता और वह मनचाही जगह म कारखाना खोलने के लए
अपने साथी श्रमजीदियों के सघ (०16) की अनुमति पा लता तब वह उस्ताद
हो जाता था । उस्ताद श्रमजीवी अपने परिवार के सदस्या की सहायता और प्राय
एक या दो कारोगर तया एक या दो नवसिखुओं की मट्टायता पाकर उस विशेष
गिरोह का रूप घारण कर लेता था जिसका चलन मब्य युगा में था । सिद्धान्तत
एक सिंरोह के सभी सदस्य एक हो स्यान पर रहते थे, जिसमें निवास करने का
स्थान ऊपरी मजिल पर होता था और नीचे की मजिल म व्यवसाय होता था जिसमें
काम करने के कमरे (कार्य-कष) पीठे हातें थे ऑर विज्य-ककष सामने । हस्तशित्प
प्रणाली ( सकण्तांटच्७ 85६60 ) के जन्तगत उद्योग मूलत वेयक्तिक
कोटि का होता था जो आज वी पूजोवादी प्रणाली की तरह समक्त प्रयत्दों पर निर्भर
नहीं था 1
जब सय का चरमोत्कर् था तो वह बहुत हो उपयागी था तथा अनेक तरह के
उद्देस्यो को पूति करता था । वह अपने सदस्यों के आधिक हित की रक्षा करता था;
वह श्रमजीवियों के लिए प्रादिधिक शिक्षण ( थ£८िताएड पप्स्घ्तछाण्छ
की व्यवस्था करता था, वह निर्मिति (हे &एएथ८एस्ए छ) का मानदड ऊचा
रखता था तया वैयक्तिक हितों को समाज-कल्याण के मातहत बनादा था । लेविन
इसमें कोई असुविवा नहीं हो, ऐसो वात नहीं हैं । इसका निहित सिद्धान्त एकाधिकार
था; इसके कार नियम साहस या उद्यम को दबाने थे, यह मजदूरी को निम्न करता
या, यह उस प्रकार के औद्योगिक संगठन को बढ़ाता था जो मध्य खेणी का ही उत्पादन
कर सकता 1 पर्धटवको शताद्दी के अन्त तक परित्याग प्रधान सौति (छडट!घरडोएसन
व शिंएटक) के अपनायें जाने तया परिणामत- प्रतिदन्दी सेवक (०0)
या कारगर सप ( उ०एह्ता्ए/&ए एपपात ) के जन्म के कारण यह
प्रणाली क्षयग्रस्त होने लगी । पूजीवाद की वृद्धि तया उद्योग में पूजी के बढ़ते
हुए प्रयोग नें भी जिसका परिणाम, उद्योग वितरण के मोगोलिक परिवर्तन में हुआ,
मर्घों के ह्लाम में योगदान दिया ।
गृह-प्रमाली ( ए०्त९६ि८ 5्डधढाटा )-सव प्रथाठी वे. पतन के
साय एक नई कोटि के संगठन का उदसव हुया जिसका नाम था यूह-प्रधानी 1 सघ-
प्रधाली के अन्तगंत उस्ताद शिली अपना कच्चा माल खरीदता था, उसे अपने हो
कारलाने में अपने परिवार तया नियुसों (पच्ता0ए९€5) की सहायता से
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