उभरते प्रश्न | Ubharte Prashn
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh
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आचार्य श्री रामलाल जी - Achary Shri Ramlal Ji
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की गई आाशातना की क्षमा-याचना खमासमणों की पहली पाटी में खड़े होकर
की जाती है । वैठे-वैठे की गई अविनय अशातना की क्षमा-याचना खमासमणों
की दूसरी पाटी द्वारा वैठे-वैठे की जाती है 1
(15 )
प्रश्न : हमारे पूर्वजों के नाम से जो दुकानें, व्यापार, मिलें, कारखाने, कृषि फार्म
आदि चलते हैं । कया उसकी क्रिया हमारे पूर्वजों को भाती है ?
उत्तर : पूर्वेजो ने अपने हाथ से दुकान, व्यापार आदि किया और उन
वस्तुओ का स्वेच्छा से विधि पूर्वक त्याग नहीं किया हो तो उन दुकान
आदि मे होने वाली क्रियाओं का सम्बन्ध उन पूर्वजों की आत्माओ के साथ
भी रहता है ।
( 16 )
प्रश्त : हमारे पूर्वजों के नाम से पौषघ शाला, स्थानक, पुस्तकालय, चिकित्सालय,
छात्रावास, विद्यालय, घर्मादा पारमार्थिक ट्रस्ट मादि अनेक सस्थायें वनी हुई है । वहा के
विभिन्न शुभ कार्यों की फ्रियायें वया हमारे प्रवंजो को लगती हैँ ?
उत्तर : पूर्वजों ने पौपघशाला आदि का निर्माण - करवाया । ऐसे शुभ
कार्य तभी सम्पादित होते हैं जब उन परिग्रह से मोह-ममत्व हृटता है और
त्याग की भावना वनती है । यदि कदाचित् किसी की उन मकानों मे भी
आसक्ति रह गई हो तो उस आसक्ति से सम्बन्धित क्रियायें उनको भी लगती
हैं। आसक्ति रहित किए गए पारमाथिक कार्य से उन आत्माओं को महान्
पुष्यादि फल की प्राप्ति होती है । वे शुभ क्रियायें परलोक मे भी लगती रहे--
ऐसा कम सम्मव है । क्योकि क्रियाओं का जन्म-जन्मास्तर सम्बन्च ममत्व से
होता है । किन्तु पारमाधिक वस्तुओं के वनाते समय ही बनाने वालो ने ममत्व
का त्याग कर दिया इसलिए तत्क्षण ही उसको पुण्य, आत्म शुद्धि आदि लाभ
प्राप्त हो जाता है ।
(17 )
प्रश्न - चहुत से लोग ती्घफरो के नाम से, कल कारखाने, दुकानें, औपघालय,
वाचनालय, सबने, ग्रन्यासय, नगर, बातसदिर, छात्रावास, स्मूति भवन लादि अनेक
सस्यायें चलाते हूं । जब कि तीर्घकर सगयान मोल पधार गये हैं । ऐसी स्थिति में घनके
नामों से चलने यानी सस्थानों की घुमनबशुम फ़ियायें किनको लगती हैं
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