नेमिनाथ महाकाव्यम | Neminath Mahakavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
249
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४
श्रीजिनमद्रसूरि हस्ते स्व भ्रातृ सा । लक्खा, सा । केल्हा कारिताति विस्तारो-
हसवे श्री भावप्रमसुरि पट्टे श्रीकीरतिरत्नाचार्या बभूबतुः ते चोत्तर देशादिषु
प्रतिबोषितानक नवीन श्रावक संघा गौीतार्था कृत श्री लावण्यशीलोपाध्याय,
था । शान्तिरत्व गणि, वा । क्षान्तिरत्त गणि, वा । धमंघीर गणि: अनेक
शिष्य वर्गा: ततः आत्मायुरन्त विज्ञाय प०्चदशोपवास: प्रथमं संलेखनं
कृत्वा षोडशोपवासि सदा. सादसिकतयाहंदादीनु साक्षी-कृत्य, चतुविध, संघ
समक्ष' स्वमुखेनानशन गृहीत्था, पालयित्वा दश दिनादु एवं पंचविशति दिनातु
शुभ ध्यान तोति वाह्म सं० १५२४५ वैशाख बदि ५ पंचम्याँ श्री वीरमपुरे
स्व प्रसूृता: । तस्मित्दिने तत्पुण्योनुभावतः श्री जिनबिह्दारे स्वयं प्रादान्य
दीपा: स्पष्ट बशूवतुरिति: ततकच । तस्मिद्॒ श्री राठोड़ वंश चूडा-
मणि श्री बीदा नाम नरेदबर स्वयं स्थापित श्री वीरमपुरे न्याय राज्य
प्रतिपालयति सति तदादेशातु सा । केल्हा भार्या केल्द्णदेवी पुत्र सा । धन्ना,
सं० मना, सं० माला, सं» गोरा । सा। डू'गर, सा । दषराज, सुश्रावकै: सा ।
मादा पुत्र सा मोजा, सा० लकखा, सा० गणदत्त:, तत्पुत्र सा० मांडण सा ।
जगा प्रमुब परिवार सश्री के: सं० । १५१४ बहु सघ मिलन श्री दात्रुडजय
श्री गिरनार तीर्थातिविस्तारती्थंया त्राकरण प्राप्तसंघपतिपदतिलक: श्री गिरनार
देव्य: श्री वीरमसपुरे श्री शान्तिनाथ महाप्रसाद विधापन सफली-
क्रियमाण लक्ष्मी के: संवत् १५२५ का बेशाख बदिश दिने श्री कीतिरत्नाचार्याणां
स्तूप स्थापित: कारितरच पादुका सहितस्त स्व प्रतिष्ठितस्य श्री खरतर गच्छे
श्रीजिनमद्रसुरि पट श्री जिनचन्द्रसूरिभि: शुभंमवतु शिष्य कल्याणचन्द्र
सेवित: प्रशस्ति लेखन हर्षविशालों प्रणस्ति चिरनंदतु श्रीरैस्तु 1 [ पत्र १
श्री कीर्ति रत्नसूरि जी की प्रतिमा तीर्थनायक श्री नाकोड़ा पा्वनाथ
जिनालय के गर्भगृह के आगे आले में विराजमान हैं जिस पर यह लेख है-
“श्री कौतिरत्नसुरि गुरुस्यो नम: सवत् १५३६ वर्ष सा० जेठा पुत्री
रोहिगी प्रणमति
नाकोड़ा तीथें के खरतर गच्छीय सा० माला के बनवाए हुए शान्तिवाथ
जिनालय में स्थित चरण पादुका पर निम्नोक्त लेख हैं--
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