पट पाहुड़ ग्रन्थ | Patpahudgranth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९ )
वस्त्रादि वाहा परिद्ह रहित भाव चारित्र इडन्य भी बन्दने योग्य नहीं
है, दोनो समान हैं इन में कोई भी संयमी नहीं हैं ।
भावाथ--यदि कोई अधमीं पुरुष नंगा हो जावे तो वह बन्दने
योग्य नहीं है और जिस का संयम नहीं दे बह तो बन्दनें योग्य है
ही नहीं ।
णवि देहो वॉदेज्इ णविय कुलो णविय जाइ संजुतो ।
को वंदमि गुणदीणों णहु सबणों णेयसावओ होइ ॥र७॥
नापि देहों वन्द्यते नापिच कुलें नापिच जाति संयुक्तम् ।
कंवन्दे गुणहीनमू नेव श्रवणों नेव श्रावको मवति ॥
अथे--न देह को बन्दना की जाती है नकुल को न जाति को,
गुण हीन में किस को बन्दना करें, क्योंकि गुण हीन न तो मुनि है
और न श्रावक हैं ।
वंदामि तव सामण्णा सीलेच गुणंच वंभ चेरंच ।
सिद्धगमणंच तेासिं सम्पत्तेण सुद्ध भावेण ॥२८।॥।
बन्देतपः समापन्नाम् शीेच गुणत्र ज्रह्मचय्र ।
सिद्ध गमनच तेपाम् सम्यक्त्वेन झुद्ध भाविन ॥
अथ--मैं उनको रुचि सहित झुद्ध भावों से बन्दना करता हूं
ज्ञा पूर्ण तप करते हैं; में उनके दील को गुण को और उनकी सिद्ध
गति का भी बन्दना करता हू
चउसट््चिपरसहिओ चउर्तासहिअइसएहिं संजुत्तो ।
अणबार वहु सत्ताहि ओ कम्पक्खय कारण णिमित्तो २९)
चतुः घष्टि चमर सहितः चर्तास्त्रशदतिशये: संयुक्त: ।
#» द अगि #
अनवरतवहुसत्वहितः कम्मसयकारण निमित्तमू ॥।
अथ--जो चौसठ ६४ चमरों सहित, चौतीस ३४ अतिद्याय
संयुक्त निरन्तर बहुत प्राणियों के हितकारी और कर्मों के क्षय होने
का कारण ह 1
”
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