मराठों का नवीन इतिहास तृतीय खण्ड | Maratho Ka Navin Itihas Khand 3
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
552
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोविन्द सखाराम सरदेसाई - Govind Sakharam Sardesai
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय १
सारायणराव का नौ मास का शासन
[१७७२-१७७३ ई०]
१ पूना के शासन को अततिम साँसें। २. नारायथराब पेशवा नियुक्त 1
३. पूना की परिस्थिति--गार्दी लोग ४. उत्तेजना का आरम्म--बिसाजी
पत लेले ।
४ नागपुर का उत्तराधिकार--्रभु ६ नारायणराव को राज्यच्युत करने
लोग । का चडयत्र ।
७ हुत्या सम्पन्न 1 ४. रामशास्त्री द्वारा अपराधी का
मवदेघण च दण्ड ।
१. पूना के शासन की मततिम सासें--यदि हम अपने वत्तमान जान का
माधार लेबर मराठा इतिहास के अतीत पर टृष्टिपात करें, तो हमारा ध्यान
इस और जवश्य जायेगा कि १७७२ ई० मे पेशवा माघवराव प्रथम की मृत्यु
सराष्ट्र के भाग्य मे महान परिवतन हुआ था, पर उस समय उसे कौई जान
नहीं पाया । आगामी ३० वप मराठा सरकार के स्वरूप मे परिवतन लाने
वाले हुए । साथ ही वाहा शक्तियों मे भ्पेक्षाइतत वृद्धि भी हुई । इन दोना
कारण! ने मिलरर मराठा स्वतत्रता को हानि पहुँचायी तथा मराठा राज्य
वी एकता नप्ट कर दी । भव तक मराठा जाति की गतिविधियाँ पुना से
सचालित होती थी जो उनवा के द्वीय स्थान था । अब तक उनकी बे द्वीय
सरकार का एव स्थायी अध्यक्ष रहा था, जिसे सभी से अपनी माना पालन
कराने का वैध अधिकार प्राप्त था | यहूं बघ अध्यक्ष चार क्रमागत शासना
में सर्देव चीर पुरुष रहा था । यह युद्ध अयदा बूटनीति भौर कभी-कभी दोनों
का जमजात नेता होता था ।
परतु नारायणराव के राज्यारोहण (नवम्वर, १७७२ ई०) के साथ ही
मराठा राज्य अध्यक्षह्मीन हो गया । यह सत्य है वि पेशव! का स्थान कभी
रिक्ता नहीं रहा परतु कभी पेशवा अतपर्वयस्क होता था अथवा अतहीन गृह
युद्ध स अपनी रक्षा करने में असमथ होने के कारण अपनी राजधानी और देश
स भाग जाता था । इस दशा मे प्रशासन की संचालन शक्ति का किसी भत्री
या मधरिमण्डल में निहित हो जाना स्वाभाविक था । कोई मत्री चाहे कितना
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