कीर्तिलता | Kirtilata
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वासुदेवशरण अग्रवाल - Vasudeshran Agrawal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ १, थिधापति का जीवन-बरित [ कीलिलता
विद्यापततिके जीवनका परिचय अधिक प्राप्त नहीं है, किन्तु उनके
रन्थों और पदोंते ज्ञात होता है कि ओइनीवंदके कई राजाओंकि साथ
उनका सम्बन्ध था । अनुशति है कि ये अपने पिताके साथ राजा गंगेश्वर
को राजसभामें भी जाया करते थे। राजा यणेशराय की मृत्यु २५२
लक्ष्मण संबत्में हुई, ऐसा कीतिलतामे हो उल्लेख आया है ।
लख्खससेन नरेस लिहिअ जे प्स्ख पंच वे |
तम्महू मातहि परदम पररुख पंचमी कहिश्र जे ।
( कौरतिस्, २ हनन
लक्ष्मंग सेन संवतुका आरम्भ कब हुआ इस विधयमे मतभेद है ।
कीकहार्नने १११९ ई० में उसका आरम्भ माना था । यहाँ उसीकों
स्वीकार किया गया हैं । तदनुसार २५९ लक्ष्मणसेन संवत १३७१ ई० के
वरावर होता हैं। उस समय जब गणेश रायकी मृत्यु हुई, तब विधापतिकी
उम्र थोड़ी ही थी । अनुमान किया जाता हैं कि वे १०-१२ वर्पके रहे
होगे । इस आधारपर बिद्यापतिका जन्म १३६० ई० के लगभग मामा जा
सकता है । उस समय कीरतिसिहुकी अवस्था भी छोटी थी । उन्होंने
जौनपुरके सम्रादू इबराहीम शाहको सहायतासे १४०३ ई० में मिथिलाका
राज्य पुन: प्राप्त किया । उतत समय विद्यापतिका बय ४ वर्पके छंगभग
रहा होगा । यह विद्यापतिके व्यक्तित्वकें विक्रासकी पूर्वावस्था कही जा
सकती है । वे जन्मजात प्रतिभाशाली कवि थें, किन्तु यह निश्चित ज्ञात
नहीं होता कि उस अवस्था तक उन्होंने कया ग्रस्थ-रचना की ? कीर्तिसिहूस
उनका सम्बन्ध तो गणेश्वरकें समयसे ही चला आता था भौर बहू सम्बन्ध
कीतिसिहकी राज्यापहुत अवस्थामें भी बना रहा । किन्तु जब की तिसिटू
राजगद्दीपर बैठे तब विद्यापतिकों अपनी प्रतिभाके अनुसार काव्य रचना-
का अवसर प्राप्त हुआ । उसके पहुले सिधिला में भी राजविप्लव था
अराजकताकी दशा थी, जिसका उन्होंने स्वयं द्रावक वर्णन किया है (कीसि०,
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