कीर्तिलता | Kirtilata

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Kirtilata by वासुदेवशरण अग्रवाल - Vasudeshran Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ १, थिधापति का जीवन-बरित [ कीलिलता विद्यापततिके जीवनका परिचय अधिक प्राप्त नहीं है, किन्तु उनके रन्थों और पदोंते ज्ञात होता है कि ओइनीवंदके कई राजाओंकि साथ उनका सम्बन्ध था । अनुशति है कि ये अपने पिताके साथ राजा गंगेश्वर को राजसभामें भी जाया करते थे। राजा यणेशराय की मृत्यु २५२ लक्ष्मण संबत्‌में हुई, ऐसा कीतिलतामे हो उल्लेख आया है । लख्खससेन नरेस लिहिअ जे प्स्ख पंच वे | तम्महू मातहि परदम पररुख पंचमी कहिश्र जे । ( कौरतिस्, २ हनन लक्ष्मंग सेन संवतुका आरम्भ कब हुआ इस विधयमे मतभेद है । कीकहार्नने १११९ ई० में उसका आरम्भ माना था । यहाँ उसीकों स्वीकार किया गया हैं । तदनुसार २५९ लक्ष्मणसेन संवत १३७१ ई० के वरावर होता हैं। उस समय जब गणेश रायकी मृत्यु हुई, तब विधापतिकी उम्र थोड़ी ही थी । अनुमान किया जाता हैं कि वे १०-१२ वर्पके रहे होगे । इस आधारपर बिद्यापतिका जन्म १३६० ई० के लगभग मामा जा सकता है । उस समय कीरतिसिहुकी अवस्था भी छोटी थी । उन्होंने जौनपुरके सम्रादू इबराहीम शाहको सहायतासे १४०३ ई० में मिथिलाका राज्य पुन: प्राप्त किया । उतत समय विद्यापतिका बय ४ वर्पके छंगभग रहा होगा । यह विद्यापतिके व्यक्तित्वकें विक्रासकी पूर्वावस्था कही जा सकती है । वे जन्मजात प्रतिभाशाली कवि थें, किन्तु यह निश्चित ज्ञात नहीं होता कि उस अवस्था तक उन्होंने कया ग्रस्थ-रचना की ? कीर्तिसिहूस उनका सम्बन्ध तो गणेश्वरकें समयसे ही चला आता था भौर बहू सम्बन्ध कीतिसिहकी राज्यापहुत अवस्थामें भी बना रहा । किन्तु जब की तिसिटू राजगद्दीपर बैठे तब विद्यापतिकों अपनी प्रतिभाके अनुसार काव्य रचना- का अवसर प्राप्त हुआ । उसके पहुले सिधिला में भी राजविप्लव था अराजकताकी दशा थी, जिसका उन्होंने स्वयं द्रावक वर्णन किया है (कीसि०,




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