शासन पर दो निबन्ध | Shasan Par Do Nibandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जॉन लोके - John Locke
जॉन लॉक (1632-1704) आंग्ल दार्शनिक एवं राजनैतिक विचारक थे।
सरला मोहनलाल - Saralaa Mohanlal
No Information available about सरला मोहनलाल - Saralaa Mohanlal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्ट्र
से असंगत है। वास्तव में 85599 की प्रथम और द्वितीय पुस्तकों चतुर्थ पुस्तक के लिए
भूमिका प्रस्तुत करती हैं जिसमें ज्ञान के मूल तथा उसकी निर्चयात्मकता और सीमा को
निर्धारित करने का प्रयत्न किया गया है। लॉक के अनुसार उसके 8582४ का यही मुख्य
ध्येय है । इस दृष्टिकोण से विचार करने पर 8558 के अनुभववाद ( छिपगुरणंठांडएए )
और टू ट्रौटिजेज के बुद्धिवाद (प्राकृतिक विधान की धारणा सम्बन्धी) का जो विरोध
प्राय: प्रदर्शित किया जाता है वह अतिरड्जित और भ्रामक है, क्योंकि वह 559
के बुद्धिवादी स्वरूप की उपेक्षा करता है ।'
प्राकृतिक विधान को लॉक बुद्धि का विधान मानता है। इसका ज्ञान गणित या
ज्यामिति के ज्ञान की ही तरह प्राप्त होता है। किन्तु गणित और नीतिशास्त्र में एक
विद्षेप अन्तर है । नैतिकता की कल्पना ईश्वर के अस्तित्व के बिना नहीं की जा सकती |
कारणवाद के सिद्धान्त के आधार पर हम अपने अस्तित्व के ज्ञान से ईश्वर के अस्तित्व
का अनुमान करते हूं। प्राकृतिक विधान उसी की सृष्टि है । ईद्वर और प्राकृतिक
विधान के सम्बन्ध के विपय में राजदर्शन के इतिहास में दो प्रसिद्ध मत रहे हैं । मध्य-
युग के कुछ विचारकों के अनुसार प्राकृतिक विधान की उत्पत्ति ईश्वर में व्याप्त बुद्ध
से है । ईश्वर अपनी इच्छामात्र से इसमें परिवर्तन नहीं कर सकता । प्राकृतिक विधान
इसलिए ठीक नहीं है कि वह ईद्वर का आदेश है बल्कि ईश्वर ने उसे इसलिए समा-
दिप्ट किया है कि बह स्वत: ठीक है । ये विचारक 1२००115६५ कहे जाते हैं । विधान-
शास्त्र (घाएंशुकपत॑लातत ) में यह सिद्धान्त बुद्धिवाद (ए्ल[ट८टएकपं50 पफट0पप्र
0 [४ ) के नाम से प्रचलित है जिसके अनुसार विधान संप्रभु ($0श्ल लग) की
आज्ञा ((ताएापनापएं ) नहीं है, बल्कि प्रकृति एवं मानव में निहित बुद्धिसंगत व्यवस्था
की अभिव्यक्ति है । इसीलिए वह शासक तथा शासित दोनों को बाध्य करता है ॥
इसके बिपरीन !एंताएए0/ 11505 कहें जानेवाले विचारकों का मत यह हैं कि प्राकृतिक
विधान ईग्वर की रच्छा का ययोतक है। देवी इच्छा पुर्ण स्वतस्त्र है । वह बौद्धिकता
1. नाक के देन के उदिवादो पाल, वो महत्व देनेवाली कतियों में थे मुख्य हैं ८-
दिन, नि दवा (नलनतलिए पिया सहलियदाधीधए, ((0र0एत, 1694.)
ििजतेचलापा बषित हा; दााएं (पडा जे-्कारप प्रधण्णण थे ० ४दए6
बंदी रख दपििसनफद ैरिवकन ((:तानिवति कण, 1917); शिवा ए1€ द्वाप्घिंड00, का
2 कह: 21:/31 ८तेपंठा ते (0र्दितठे, 924.)
उाइिफ़तेघाकिवा ;. नौ. है... चादर सिएपाई पा. पट छाछा05०90घ
उक्त, 93.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...