गोर्की के संस्मरण | Gorki Ke Sansmaran
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ कुतर्की यात्री
रहता । वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति, जिसे सष्टिकर्ता ने देखने के लिये दो
आँखें दी हैं, आगको देखते ही आकर्षित हो उठता है ।
“कुछ भी हो, हमारे जहाज़ के सब यात्री हड़बड़ाते हुए डेक पर
'चले आए, भर उस दृद्यका मजा लेते हुए आपस में इस बात पर बहस
करने छगे कि किस चीज पर आग लगी है । एक साधारण-सी बुद्धि
रखने चाले व्यक्ति के लिये यह बास स्पष्ट थी कि किसी-न-किसी जद्दाज् पर
आग लगी होगी, क्योंकि समुद्र मैं घास की गक्षियाँ बहती नहीं रहती; पर
जो बात एक यूंगे और बहरे बच्चे तक के लिये स्पष्ट थी वह हमारे सह-
यात्रियों के लिये एक समस्या का विषय बन गई थी । मुझे अक्सर इस
बात पर आश्चर्य होता है कि यात्री लोग एक अत्यन्त सर और स्पष्ट बात
को भी क्यों नहीं समझ पाते । जीवन की जिस निर्विचित्रता से वे पीड़ित
रहते हैं वद्द कभी इस प्रकार के फ़ालतू विषयों पर बहस करने से दूर
नहद्दीं दो सकती |
“बहरहाल मैं छान्त भाव से यात्रियों का बाद-विवाद सुन रहा
था। सददसा उन यात्रियों में से एक स्त्री चिछा उठी--“ओह ! इस जछते
हुए जहाज़ पर निश्चय ही सुसाफ़िर होंगे !”
“पकितना बड़ा आविष्कार इसने किया था ! यह तो सानी हुई बात
है कि जहाजों मैं निश्चय ही आदमी रहेंगे । पर वह इतनी देर बाद यह
अनुमान कर पाई !
““इसके बाद उस स्त्री ने फिर चिाना झुरू किया--“उन आदमियों
को बचाना चाहिये ।'
“इस पर यात्रियों में नये सिरे से बहस शुरू हुई । कुछ लोगों ने
अपना यह मत प्रकट किया कि बिंना विलम्ब उस जलते हुए जद्दाज के
यात्रियों को बचाने के लिये चल पड़ना चाहिये; दूसरे लोग, जो कि.
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