मेरे बचपन की कहानी | Mere Bachappan Ki Kahani

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Mere Bachappan Ki Kahani by नयनतारा सहगल - Nayantara Sehgal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२२ मेरे बचपनकी कहानी केसी होती है इसका हमें ज्ञान ही न था । हमने बहुत पहलेसे ही किसी भी स्थितिमें रहकर अधिकसे अधिक आनन्द प्राप्त करनेकी आदत डाल छी थी इसछिए ऐसी कोई घटना घटित होनेकी सम्भावना है इस विचारसे ही हमारे मनमें एक तरहकी शुद्गुदी सी उत्पन्न हो जाती थी । जहदाजपर जब सब यात्री सवार हो चुके तब कप्तानने एक सभा की जिसमें उसने स्फूर्तिमय ढंगसे हम छोगोंको सूचित किया कि जबतक यात्रा समाप्त नहीं हो जाती तबतक हमें अपने आपको अमेरिकन नी सेनाकी अधिकार-सीमाके अन्तगंत समझना चाहिये । आप छोगोंको मेरा हुक्म मानना होगा उसने संक्षेपमें कहा मुझे यह अधिकार है कि स्वविवेकके अनुसार मैं आपको जहाजसे नीचे उतार दूँ और प्रत्येक मामठेमें अपनी निर्णायक बुद्धिसे काम लूँ. यह सुनकर लेखा और में एक दूसरीकी तरफ देखकर मुसकरा पढ़ीं । यह तो अच्छी आदेश-नियंत्रित खतरेकी यात्रा थी . जिसमें युद्ध- कालीन नाटकके सभी विद्यमान थे इसके बाद कप्तानने हमें बताया कि जीवन-रक्षक-पेटी छाइफ बेल्ट केसे पहननी चाहिये ओर किस तरह उसका प्रयोग करना चाहिये । उसने यह भी कहा कि पेटी या तो हमेशा पहने रहना चाहिये या उसे हमेशा अपने साथ रखना चाहिये । मेरे लिए यह बढ़ी जदमतका काम था क्योंकि मेरी रक्षा-पेटी कमरमें ठिकानेसे ठद्दर ही नहीं सकती थी । मुझे व्यर्थके बोझ- की तरह उसे एक कंधेसे ठटकाये रखना पढ़ता था । फिर भी मैंने यह सोचकर सन्तोषकी सॉस छी कि यह तरीका इससे बेहतर ही है कि में उसे एक बोझीढे सामानकी तरह कमरपर छादे-ढादे फिरा करूँ । यात्रियोंके केवढ दो ही वरग रखे गये थे-अफसर और सैनिक । पोछिश सेनिक श्रेणीमें थे । वे निचले भागमें यात्रा कर रहे थे और उन्हें एक दूसरीसे सटाकर रखी गयी शिविर-शय्याओंपर सोना पढ़ता था । अन्य सब यात्री अफसरोंकी श्रेणीमें रखे गये थे । वे ऊपरी संजिलमें प्रथक-प्रथक्‌ कोठरियोंमें रहते थे । भोजन करनेका स्थान सब छोगोंका एक ही था और हम ठोग एक दूसरेसे मिढा करते थे ।




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