आधुनिक कविता में मुक्त छन्द का विकास - निराला के विशेष सन्दर्भ में | Aadhunik Kavita Men Mukta Chhand Ka Vikas - Nirala Ke Vishesh Sandarbh Men

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Aadhunik Kavita Men Mukta Chhand Ka Vikas - Nirala Ke Vishesh Sandarbh Men  by दिनेश प्रसाद मिश्र - Dinesh Prasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(12) 'पल्लव' की एक दूसरी कविता “छायावाल' मे इस प्रकार के तीन छन्दो का प्रयोग हुआ है | द्विविदी युगीन कवि गुप्त की तरह छाया वादी प्रसाद को एक छन्द-एक प्राचीन छन्द को लोकप्रिय बना देने का श्रेय जाता है। यह छन्द है-'ऑसू' मे प्रयुक्त छन्द । आखिर यह प्राचीन छन्द कौन सा है ? विद्वानों मे इस प्रश्न पर मतभेद है। कुछ लोगो के अनुसार यह सखी छन्द है* कुछ अन्य लोगो के अनुसार यह मानव छन्द है* । वस्तुत सखी, मानव, मधुमालती, मनोरमा आदि कई छन्द चौदह मात्राओ के चार चरणों वाले छन्द है। किन्तु इन चौदह मात्राओ के नियोजन से इन छन्दो की लय अलग-अलग हो जाती है । “आँसू मे प्रयुक्त छन्द के चरण की लय अलग-अलग हो जाती है । “ऑसू' मे प्रयुक्त छन्द के चरण भी चौदह-चौदह मात्राओ से बने है, किन्तु उनकी लय चौदह मात्राओ के प्राचीन छन्दो से सर्वथा भथ्न है। इसलिए *ऑसू' का छन्द न 'सखी' छन्द है और न “मानव' छन्द। वह एक नया ही छन्द है-यह बात “सखी' और “मानव' छन्दो के उदाहरणो की लय के साथ “आँसू! के छन्द की तुलना करने से स्पष्ट हो जायेगी । जगन्नाथ प्रसाद “भानु' के द्वारा दिये गये सखी और मानव छन्दो के उदाहरण है- (क) सखी- “काल भुवन सखी रचि माया, यह माया पतिहि कुभाया प्रभु तक अति प्रीति प्रकासी, रचिरास कियो सुख रासी ।” (ख) मानव- “मानव देहे धारै जो, राम नाम उच्चारै जो । नहि तिनको डर जम को है, पुण्य पुज तिन सम को है ।” अब तुलना के लिए हम “ऑसू' का एक छन्द लेते है- “ये सब स्फुलिंग है मेरी, इस ज्वालामयी जान के । कुछ शेष चिह्न है केवल, मेरे उस महा मिलन के ॥” अतणएव यदि इस छन्द को यदि नया नाम आँसू दिया गया है तो वह ठीक ही है । प्रसाद की अपेक्षा अन्य छायावादी कवियो ने हिन्दी मे प्रचलित प्राचीन मात्रिक छन्दो का कम ही प्रयेग किया है । प्रसाद के पश्चात्‌ प्राचीन मात्रिक छन्द का सर्वाधिक प्रयोग पन्त जी ने किया है । निराला मे परम्परागत मात्रिक छन्दो की सख्या बहुत कम है-वीर, ताटक, तमाल, रोला आदि । परम्परागत मात्रिक छन्दो के टुकड़े उनके गीतों व मुक्तछन्दो के बीच-बीच मे मिलते हैं । अपने मूल-परम्परागत रूप मे प्रयुक्त मात्रिक छन्द महादेवी जी मे बहुत कम है । उन्होंने चौपाई, रोला, हरिगीतिका, गीतिका, पीयूष वर्ष, एवम्‌ लावनी इत्यादि परम्परागत मात्रिक छन्दो का प्रयोग किया है । आधुनिक हिन्दी कविता के गीतों मे लयात्मक वैविध्य अत्यधिक है। इन सब लयो को वर्गीकृत करना लगभग असम्भव है। कुछ गीतो की रचना भक्तिकालीन पदों जैसी है। कुछ गीतों के लयाधार का सर्वाधिक 'पल्लव -पत, पृ 165 इतिहास आर आलोचना”-नामवर सिह, पृ 76 आधुनिक हिन्दी काव्य में छन्द-योजना -पुू लाल शुक्ल, पृ 253-54 छन्द प्रभाकर” जगन्नाथ श्रसाद 'भानु पृ 44-45 ऑँसू'-प्रसाद, पृ 9 रा बि . के... हे. लीन




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