व्याकरण - शास्त्र में समासों की शाब्दबोध - व्यवस्था | Vyakaran - Shastro Men Samashon Ki Shabdabodh - Vyavastha

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Vyakaran - Shastro Men Samashon Ki Shabdabodh - Vyavastha  by दिनेश प्रसाद मिश्र - Dinesh Prasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पीमाँसक आचार्य वैयाकरणो की इस मान्यता का भी करडन करते हैं कि तिपादिद प्रत्यय कर्ता एवं कर्म के बोधक होते हैं । उनका मानना है कि लिड+ प्रत्यय भावना का बौध कराते हैँ न कि कर्ता एवं कर्म का जैसा कि वैयाकरण मानते हैं । यद्यपि पर्वत इत्यादघि आख्यात पर्दा से भावना के साथ ही साथ कर्ता का भी बोध होता है फिम्तु वह आख्यास पद का शाज्दार्थ नहोकर तात्पयॉर्थि होता है जजिसे वैयाकरण आचार्य प्रतीसति के कारण स्वीजार करते हैँ | यह प्रतीतति लिद॒* प्रत्ययाँ से न मानकर उनके थावना' पब्यापार[ अर्थ के साथ ही. लक्षण अर्धापा्स्ति या प्रथमान्त पद के हारा थी कतार द अर्थ की प्रतीपिति कर सकते हैं । यथा - 'दिवदत्स: पर्चात' इत्यादि वाव्यी मैं पर्चात कें साथ प्रथमान्त पद देवदत्त: आदि संधुफ्त होता है और उन प्रथमान्त पर्दा से थी हमें क्त्तां आदि की प्रतीतति हो जाती है । क्योंकि साथ आये हुवे पद का वाक्ष्यार्थ मैं प्रयोग किया जाता है । इसी प्रकार लक्षणा एव अथर्पितत्त धारा भी कताद अर्थो की प्राप्प्त हो जाती है 1' अतः लिडुरप्रत्यय कता एल कर्म के बोधक हैं यद मानना उचित नहीं है । वैयाकरण आचार्य लि प्रत्ययी के कर्ता एवं कर्म के बोधक होने के प्रमाण रूप मैं लद्र कर्मीण च भाव चाउककिन्यद्र हु5 *4 69] एव कतीर कूद है उ4*67 है दो पार्णिनि सूत्र प्रस्तुत करते हैं । उनका कहना है लि 'लड कर्मण च** सुत्र में चकारद््य से कतीर कृत” इस पूर्व सूत्र से दौ' बार 'कतीर * की अनुवृक्त्त कर 'लकार सवर्मक धातु से कर्म आर कर्ता मैं तथा. अकर्मक धातुओं से भाव और कर्त्ता मैं होते हैं' यह अर्थ निष्पनन होता है । मीमसिंक आचार्य शबर स्वामी वैयाकरणों के उक्त मत को अस्वीकार करते दुए प्रीतपािदत 1 नन्वनयोराख्यातार्थस्वे फिम्मानमु ३. प्रतीतेरलक्षणया कपल थमा न्तपदादू था सस्भवाधितिवेत_ 1. वे+भूप्साधानप्*पुर28




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