ज्ञान गंगा भाग २ | Gyan Ganga Bhag 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञानगज्ञा ७ दूसरा भाग
| अ |
अक्र्ठ
+भक़्लसे काम लिया तो भादमी संकटसे पार हो जाता है; बेवक़्फ़ी से
काम लिया तो आफ़तमें फंस जाता है । -योगवाशिष्ट
अकस्मात
पहले एक बुनियादी बात बता दू कि ईश्वरके नज़दीक इत्तिफ़ाक़न्,
अकस्माता तोरपर, कुछ नहीं होता । -्लोगफ़लो
अति
लि दानसे दरिद्रता भोर अति लोभसे तिरस्कार होता है। अति
नाशका कारण है । इसलिए अतिसे सबदा दूर रहे । ( “अति सवत्र
वजयेत ) । -शुक्रनीति
ञ् |
तिक्रम
जो सजनोंका उतिक्रम करता है उसकी भायु; सम्पत्ति, यश, घम,
पुफ्य, भाशिप,न श्रेय ये सब नष्ट हो जाते हैं । भागवत
कि
शी थु
अतिथ
सच्ची मेश्नीका नियध यह है कि जानेवाले सेहमानकों जदुदी रुख़सत
करो जोर भाने चालेका स्वागत करो । -ना्दोमर
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